Sunday, 22 April 2018

ना-उम्मीदी सिलसिला है।



देख ऊपर, दिखता क्या है?
आसमां, फ़िर कहकशा है।।

और ऊपर कुछ नहीं है,
बस वहां मौला बचा है।।

मन अज़ल से है अकेला,
सो अकेला चल रहा है।।

घोंट लेंगे और आँसू,
पास में गहरा गला है।।

किस शजर की ओट लूं मैं?
ये जंगल बे-हद घना है।।

वो ही सूरत, वो ही रंग पर,
आज का सूरज नया है।।

जो कहा सबने सुना वो,
वो नहीं जो अन-कहा है।।

काम होंगे सब ज़मीं पर,
आसमां में बस हवा है।।

रहनुमा सौदाई, पीछे
पागलों का काफ़िला है।।

प्यार होना लाज़मीं था,
प्यार करना रह गया है।।

तेरे मेरे दरमियाँ जाँ,
एक उमर का फासला है।।

तेरा आना भी है आफ़त,
तेरा जाना भी भला है।।

ना-उम्मीदी पल नहीं है,
ना-उम्मीदी सिलसिला है।।

खामुशी भाषा ख़ुदा की
मेरी तो बस तरजुमा है।।

देख तुम को जाना मैंने
देखना मेरा मश्गला है।।


Keep Visiting!

No comments:

Post a Comment

चार फूल हैं। और दुनिया है | Documentary Review

मैं एक कवि को सोचता हूँ और बूढ़ा हो जाता हूँ - कवि के जितना। फिर बूढ़ी सोच से सोचता हूँ कवि को नहीं। कविता को और हो जाता हूँ जवान - कविता जितन...