हैं मुलाज़िम हम अपने उसूल के।
और उसूल भी कैसे फ़िज़ूल के।।
हम तो कॉलेज से आगे निकल आए दोस्त,
तुम हो बच्चे अभी, स्कूल के।।
जो उड़े ना समझो परिंदा उसे।
यूँ तो उड़ते हैं तिनके भी, धूल के।।
ज़ईफ़ होती पत्तियां, ज़र्द पड़ती खुशबुएँ।
कहाँ मर गए माली, इस फ़ूल के।।
आजकल मयस्सर हैं आम उन्हीं को,
जो बोते हैं बीज बबूल के।।
Keep Visiting!
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