Thursday, 12 April 2018

पास ना आए कोई।



हैं सुबह बे-ज़ार सब, जगाए कोई।

हैं शबें बे-दार सब सुलाए कोई।।


है हसरत के सब मिलें मुझ से।

है चाहत के पास ना आए कोई।।


है गम ये हमको पता है मगर।

है गम क्या? ये हमको बताए कोई।।


है घर अपना मुद्दत से बिखरा पड़ा।

कोई आकर संभाले, जमाए कोई।।


बुरा नहीं कोई, बस बात है इतनी -

कोई भाए हमें, और ना भाए कोई।।


रास्ते पर हम खड़े हैं मुस्तक़िल मौला।

है रज़ा के रास्ता चलाए कोई।।


ग़म नहीं है, ये है ग़म की इंतिहा,

ग़म में भी जब रो ना पाए कोई।।


ना-उम्मीदी जान है, जान हमारी।

दम है तो छीन के बताए कोई।।


बे-सबब ही रो पड़े फूटकर "प्रद्युम्न"

उम्मीद में के आकर हंसाए कोई।

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