Saturday, 3 March 2018

दिल-लगी से।



कह देते हैं हम ये बात अभी से।

हो जाएंगे रुख़्सत राफ़्ता सभी से।।



क्या ही रखें दरया से उम्मीदें,

निकलने लगे हैं अब नाले नदी से।।



है ख्वाइश ये उनकी के ऐलान करा दें -

"मर गए समंदर पानी की कमी से"।।



जायज़ नहीं है मुफ़्लिस को रुलाना।

सैलाब उमड़ते हैं आँखों की नमी से।।



बेदारी, बेज़ारी, शायरी सब फ़न हैं।

हासिल हुए हैं हमे दिल-लगी से।।



एक शेर जो हुआ था तख़लीक़ हम ही से।

उसने ली है अदावत, किससे?, हम ही से।।



मतले का सबब थी तेरी उदासी।

और मक़ता हुआ है तेरी हँसी से।।



ख़ुद ही हैं खुद के अजाबों के मसदर।

करें भी तो कैसे शिकायत किसी से।।



जब से पढ़े हैं अशआर-ए-ग़ालिब।

लगती है दुनिया इक बाज़ी तभी से।।



एक इज़हार ही इस दिल से होता नहीं है।

बड़े परेशाँ हैं हम दिल-ए-बेकसी से।।



तरतीब से जो ख़्वाब उसे देख सजाए।

उसी ने बिखेरे बड़ी बरहमी से।।



ना-शायर को मिल गई मुहब्बत "प्रद्युम्न"।

तुमने क्या पाया शेर-ओ-शायरी से?

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