Saturday, 3 March 2018

जीवन।




बहुत देर तक स्थिर रहने पर,
हम ऊंघने लगते हैं।

एक लंबी ऊंघ,
हमे सुला देती है और,

और,
सो जाने पर,
हम अस्थिर हो जाते हैं....


बहुत देर की अस्थिरता,
जन्म देती है,
उबासी को....और,

और,
उबासी हमे जगा देती है।


इक ऊंघ-ओ-उबासीेे,
के बीच का वक़्त,
"जीवन" है।

Keep Visiting!

No comments:

Post a Comment

चार फूल हैं। और दुनिया है | Documentary Review

मैं एक कवि को सोचता हूँ और बूढ़ा हो जाता हूँ - कवि के जितना। फिर बूढ़ी सोच से सोचता हूँ कवि को नहीं। कविता को और हो जाता हूँ जवान - कविता जितन...