सोच से फिर सोचना है।
जो "सोचना" है,
तो हो तुम।
"सोचना" गर है नहीं।
तो "ज़हन" कहाँ है?,
कहाँ है "मन"?
होगा ना एक "ज़मीर" तुम्हारा,
वो कहाँ है "सोचो तो"।
जो अगर ये सब नहीं है,
तो तुम कहाँ हो?,
क्या फ़ौत हो गए?
बोलो भी।
चुप हो काफ़ी,
शब्द कहाँ है?
शब्द हैं ज़्यादा,
"विचार" कहाँ है?
"विचार" तो हैं "सोचने" में,
और "सोचना" है ही कहाँ।
होता अगर तो तुम भी होते,
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