“एक बार और सोच ले, मतलब लाइक सीरियसली, इलेक्शंस! तुझे सच में लगता है की तू जीत जाएगी?” वीणा ने अपने दोनों हाथों को टेबल पर रखते हुए कहा.
“जीत का तो पता नहीं
मगर जमकर लड़ेंगे, इतना पक्का है”, रक्षा ने पूरे आत्मविश्वास के साथ इलेक्शन फॉर्म
पर साइन किया.
“अरे! यार तू, अच्छा चल कम से कम मुझे यह तो बता की ऐसे अचानक
से तेरे सर पर ये चुनाव लड़ने का भूत कहाँ से सवार हो गया?” वीणा ने रक्षा के हाथों
से इलेक्शन फॉर्म छीनते हुए कहा.
“कुछ भी अचानक नहीं
होता वीणा. रेमेम्बेर, कुछ भी अचानक नहीं होता. मैं चीज़ें बदलना चाहती हूँ, मैं
अपने लोगों, अपने साथियों के लिए कुछ करना चाहती हूँ.”, रक्षा ने अपने इरादे स्पष्ट किये.
“व्हाट! कौनसी फिल्म देखकर आ रही है बहन?, स्वदेस?, चक
दे इण्डिया?, सलाम बॉम्बे?, मदर इण्डिया? ये
जोशीले डायलोग्स?, कहाँ से आ रहे हैं
यह?, कहाँ है इनका उद्गम? सीधे-सीधे बता तू आख़िर करना क्या चाहती
है” वीणा ने एक
सांस में कहा.
“Ok so listen, I just want to remove
this bloody semester system from our university, यार मतलब सालभर exams की tension, कभी internals तो कभी
Assignments. Life की लगी पड़ी है यार वीणा.”, रक्षा जोश में आ गई.
“वाह! यदि ये सिस्टम
आपको पसंद नहीं तो इसका मतलब किसी को भी पसंद नहीं. Do you know the
importance of
semester system, एक ही साल में हम
आठ से ज़्यादा सब्जेक्ट्स पढ़ लेते हैं, एक साथ ढेर सारा
सिलेबस नहीं पढ़ना पड़ता और साथ ही internals की वजह
से पढाई से कनेक्शन बना रहता है. और चल मान
भी लिया की तू जो चाहती
है वह सही है तो ज़रा ये बता की how will you influence others to
stand with
you?” वीणा ने लम्बा
भाषण देकर अपनी बात समझाई.
“तू कुछ भी कह ले
मगर मैं इस semester system को हटाकर रहूंगी. यही मेरा इरादा और वादा दोनों है. और
रही बात बाकी लोगों की तो उसमे मुझे कोई मशक्कत नज़र नहीं आती. लोगों को अपनी तरफ करने की कला मैं बखूबी जानती
हूँ. यूँही कोई national
debut champion नहीं बन जाता. रक्षा
गर्व से फूल कर गुब्बारा हो गई.
“मगर ये काम तो तू
बिना चुनाव लड़े भी कर सकती है ना” वीणा ने रक्षा को चाय देते हुए कहा.
“Power
without responsibility is harmful but responsibility without power is
meaningless”, introduction to public administration, chapter-2, paragraph-4” रक्षा ने अपनी चाय खत्म करते हुए कहा.
“तो तू नहीं मानेगी”
वीणा कुर्सी से उठ गई.
“कोई शक?”
रक्षा मुस्कुराई.
“तो चलो फिर, रणनीति
बनाते हैं, “अब राम-राज्य हमे लाना है, रक्षा दीदी को जिताना है” वीणा हँस पड़ी.
All India
institute of media studies में
चुनावों का दौर शुरू हो चुका था. इस बार मैदान में रक्षा के साथ पिछली दो बार
के विजेता B.A third year
के “अर्जुन मीना” और अपनी हार का जलवा बिखेर चुके
B.S.C electronic media के
“वसंत वाघेला” थे.
रक्षा B.A second year की होनहार स्टूडेंट थी. लम्बा कद, गोरा चेहरा, सोच में डूबी हुई निगाहें
और पत्थर से मज़बूत मंसूबे. रक्षा के पिता government school में teacher थे और
बच्चों को political
science पढ़ाते थे, अपने पिता
से सियासत के पाठ पढ़ते-पढ़ते कब उसके दिमाग में राजनीति करने का सपना उतर आया, इसका
जवाब खुद उसके पास नहीं था. First year में आम लड़कियों की
तरह रहने वाली रक्षा को अचानक चुनावों में खड़ा होता देख उसके classmates और Teachers हैरान
थे, काफी ज़्यादा हैरान. कई लोगों ने उसे सलह दी की वह अपना नाम वापस ले ले मगर रक्षा ने ऐसा नहीं किया. उसे इस बात का
इल्म था कि बिना power के वो
वह काम कभी नहीं कर सकती जो वह करना चाहती है. हमारे देश के हालात कुछ ऐसे ही हैं
यहाँ डंका उसी का बजता है जिसके हाथ में डंडा हो.
“हमारा वोट तो आपको ही जाएगा रक्षा जी”, कॉलेज
कैंटीन में अपने लपनटरों के साथ बैठे वसंत ने वहां से गुज़रती रक्षा से कहा.
“जी आपका बहुत-बहुत
धन्यवाद वाघेला जी, मगर हमारी सलाह माने तो वो एक वोट जो आप हमे देने वाले हैं,
कृपया करके उसे खुद को ही दे दें at least आपको एक
वोट तो मिलेगा”, रक्षा ने women
empowerment का सजीव उदाहरण पेश
किया.
रक्षा की बात सुनते
ही वहाँ मौजूद सभी लोग ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे. यहाँ तक की वसंत के दोस्तों ने भी अपने
मुँह पर रुमाल रख लिए. वसंत को ऐसा लगा मानो किसी ने सरेआम उसकी मूंछें काट दी
हों. इतनी बुरी बेज्ज़ती तो चुनाव हारने के बाद भी नहीं होती जितनी चुनाव के पहले
ही हो गई थी.
चुनाव प्रचार ज़ोरों
पर था, पोस्टर्स लग चुके थे, पर्चे बंट चुके थे. university की
दीवारों पर तरह-तरह के slogans
लिखे जा रहे थे, कौन जीतने वाला था ये कोई नहीं
जानता था.
“Lets organize a speech session this
Monday, क्या कहते हो?”, वीणा ने रक्षा और बाकी
समर्थकों को देखते हुए कहा.
वीणा की बात सुनते
ही सभी लोग इस प्रस्ताव पर चर्चा करने लगे, इससे पहले की कोई कुछ बोलता रक्षा ने
हाँ में जवाब दे दिया.
“मगर agenda क्या होगा?, वीणा ने पूछा. बाकियों ने हाँ में
हाँ मिलाई.
“उसकी कोई ज़रूरत
नहीं, तुम सब जानते हो के मैं national level debut
चैम्पियन हूँ , I know how to speak and how to influence people”, वीणा ने पहली बार रक्षा की आँखों में घमंड देखा.
देखते ही देखते
वोटिंग का दिन बेहद करीब आ गया और चुनाव के ठीक तीन दिन पहले वीणा ने कॉलेज कैंपस
में तमाम स्टूडेंट्स के सामने अपनी स्पीच दी.
“हम semester system को जड़ से उखाड़ फेकेंगे, हम ये सुनिश्चित करेंगे
के सभी के पास अपनी बात कहने का पूरा अधिकार हो, हम आपकी बातों, आपकी मांगों, आपकी
इच्छाओं, आपकी तमन्नाओं को पूरा करेंगे चाहे फिर उसके लिए हमे मैनेजमेंट के खिलाफ
जाना पड़े. मैं रक्षा अवस्थी आप सभी से ये वादा करती हूँ के अगर आप मुझे जिताते हैं
तो मैं आपको वो सब सुविधाएँ मुहैया करवाउंगी जो पूर्व में आए लोग नहीं करवा पाए,
याद रहे मेरा निशाना अर्जुन से कई गुना अधिक अचूक और स्पष्ट है. याद रहे मेरा नारा
“I will listen to you, I
will support you, I will work for you because I am here for you. Thank you” रक्षा ने अपनी स्पीच ख़त्म की और हाथ जोड़ते हुए
मंच से नीचे आ गई.
“तुमने ये सब क्या
कह दिया है, तुमने कितना विवाद पैदा कर दिया है जानती भी हो, मैनेजमेंट के खिलाफ
बोलना वो भी बिना बात के. ये बिल्कुल गलत है रक्षा”, वीणा ने
तालियों की आवाज़ के बीच में अपनी बात कही.
“वीणा, I am a politician now,
हम वो हैं जो विवाद करना ज़्यादा जानते हैं,
विकास करना ज़रा कम”, रक्षा ने सियासत का पहला नियम जस का तस पढ़ दिया.
पिछले कुछ दिनों में
ही रक्षा में ढेर सारे बदलाव आ गए थे. अब वह एक आम लड़की
के बजाए एक तेज़-तर्रार, झूटी और भ्रष्ट कूटनीतिक बन गई
थी.
आख़िरकार वो दिन भी
आया जिसका रक्षा को बेसब्री से इंतज़ार था. चुनाव-परिणाम. सुबह से काउंटिंग में आगे चलते हुए रक्षा ने
रिकॉर्ड जीत दर्ज की. उसे कुल मिलाकर 30,204 वोट
हासिल हुए उसने “अर्जुन मीना” को पूरे 10,102 वोट से
करारी शिकस्त दी और पूरी यूनिवर्सिटी ने एक और बार “वसंत” की हार का लहराता परचम देखा.
उसे मात्र 4001 वोट हासिल हुए.
रक्षा की ख़ुशी का
कोई ठिकाना नहीं था. जीत के बाद से ही स्टूडेंट्स ने उसे रक्षा के बजाए रक्षा मैडम
कहना शुरू कर दिया. बधाइयों और शुभकामनाओं के messages और calls आने लगे. कुछ ही दिनों में उसने university president के पद की शपथ ली और कार्यभार संभाल लिया.
“रक्षा अब हमे काम शुरू कर देने चाहिए. ये लो उन
वादों की लिस्ट जो तुमने चुनाव से पहले बटवाई थी. इन सब को कैसे पूरा करना है इसके
लिए हमे यूनिवर्सिटी के सभी HODs से बात करनी होगी ऐंड
vice-chancellor के पास भी जाना होगा”, वीणा ने रक्षा को लिस्ट
थमाते हुए कहा.
“आराम से कर लेंगे
यार. पहले इस कुर्सी का मज़ा तो उठा लें”, रक्षा ने लिस्ट को डस्टबिन में फेंक
दिया.
“This is not correct, This is not at
all correct Raksha, क्या हो गया है
तुझे?”, वीणा रक्षा की हरकतों से त्रस्त हो चुकी थी.
“leave my
office now”, रक्षा झल्ला गई.
“what” वीणा ने पूछा.
“कानपुर में हड़ताल
है क्या”, I said get
out”, रक्षा आपे से बाहर हो गई थी.
“you will
pay for this” Be Ready for the consequences, वीणा नाराज़ हो कर वहां से चली गई.
चुनाव जीते एक माह
से अधिक हो चुका था और रक्षा ने किसी भी किस्म का काम नहीं किया था. धीरे-धीरे स्टूडेंट्स
की तरफ से सवाल आना शुरू हो गए और रक्षा उन्हें टालने लगी. मगर यह सिलसिला ज़्यादा
दिनों तक नहीं चल पाया और आखिरकार रक्षा ने काम करना शुरू किया. सबसे पहले वह vice-chancellor के पास गई ताकि semester-system को खत्म करवा सके. मगर वहां से उसे कोई मदद हासिल नहीं हुई. उल्टा उसे
एक ऐसी बात का पता चला जिसे सुनकर उसके पैरों तले ज़मीन खसक गई. Vice chancellor ने बताया के semester system को
खत्म करने का काम सरकार का है न की विश्वविद्यालय प्रशासन का.
इसी तरह रक्षा
द्वारा किये गए सभी वादे खोखले साबित हुए. बहुत जल्द उसे इस बात का पता चल गया के
उसने जो भी बातें लोगों से कहीं थी वो सब झूठ थीं. सच्चाई तो यह थी के उसे खुद
नहीं पता था के उसके द्वारा किये गए वादे इतने बड़े हैं और उन्हें पूरा करना कितना
कठिन है. चुनाव जीतने और power
पाने की इच्छा ने उसके विवेक और उसके
ज़मीर दोनों पर पर्दा डाल दिया था. कुछ ही महीनों में रक्षा की मुखालिफ़त शुरू हो गई
जिसके चलते उसे अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.
रक्षा को अपनी करनी
पर बहुत पछतावा हुआ. वह जान चुकी थी के सिर्फ भाषण देने से कोई नेता नहीं बन जाता.
असल नेता या नेत्री वह है जिसके पास एक विज़न हो, किसी भी काम को करने का सलीका हो.
और अपने द्वारा किये गए वादों की एहमियत का इल्म भी हो. उसे कम से कम इस बात का
आभास तो हो के जो वादे वह लोगों से कर रहा है उन्हें पूरा करना वास्तव में संभव है
भी या नहीं.
अपना इस्तीफ़ा वाईस-चांसलर
को सौंपकर रक्षा कैंटीन में बहुत देर तक अकेली बैठी रही. वह उसी टेबल पर जा कर
बैठी जहाँ से यह सिलसिला शुरू हुआ था. वही टेबल जहाँ वीणा ने उसे समझाया था और जहाँ
उसने उसकी बात को ठुकरा कर चुनाव लड़ने का फैसला लिया था. वह वीणा के इंतज़ार में
थी.
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