हो चुके हैं पाश-पाश बिखर क्यूँ नहीं जाते।
फिर रहे हैं दर-बदर, घर क्यूँ नहीं जाते।।
मेरी मर्ज़ी से आए थे मेरी आँखों में।
सुनो अब तुम छुभ रहे हो, उतर क्यूँ नहीं जाते।।
ये सलीका ये करीना यहाँ का नहीं है।
तुम इधर के नहीं हो, उधर क्यूँ नहीं जाते।।
जो करते हैं परवाह मेरी मुझसे भी ज़्यादा।
वल्लाह! ये लोग मर क्यूँ नहीं जाते।।
ये "शायद" ये "लेकिन" अज़ाब हैं प्रद्युम्न।
ये "अगर" क्यूँ नहीं जाते, ये "मगर" क्यूँ नहीं जाते।।
Keep Visiting!
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