ख़ुद ही के मुक़ाबिल हो गए हैं।
क्या हम इतने काबिल हो गए हैं।।
कुछ भी हैं, उसकी अलामत नहीं हैं।
वो मुहाफ़िज़ है हम क़ातिल हो गए हैं।।
दिल के बिना भी मुद्दत जिएंगे।
इस क़दर ये लोग बुज़दिल हो गए हैं।।
आते हैं सब, कोई ठहरता नहीं है।
हर सफ़ीने के हम साहिल हो गए हैं।।
मेरे सितमगर से मिलो तो बात ये कहना।
हमे भी कुछ ऐब हासिल हो गए हैं।।
जाम भी पीते हैं रुक रुक के आशिक़।
उल्फ़त-ओ-मुहब्बत में काहिल हो गए हैं।।
बाज़ारों में तुम ही नए हो "प्रद्युम्न"।
बाकी तो सब फ़ाज़िल हो गए हैं।।
Keep Visiting!
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