Wednesday, 3 January 2018

अहबाब आया है।



गलियारे में मेरे महताब आया है।
हक़ीक़त नहीं है बस ख़्वाब आया है।।

आज कल मुझसे तन्हाई बात नहीं करती।
आलम ये कितना ख़राब आया है।।

सुबह हुई तो अमीरों के अलार्म बज उठे।
गरीबों को जगाने आफ़ताब आया है।।

हाथ तो मिलाता है लेकिन नज़र नहीं।
इस दफ़ा वो नहीं आया, नक़ाब आया है।।

यूँ तो इम्तिहान हमारा इतना दुश्वार नहीं।
पर जिसका हमको इल्म नहीं वो बाब आया है।।

इक शेर मेरी जानिब से दोस्ती के नाम।
ज़ाती दुश्मनी निभाने, अहबाब आया है।।

भरी महफ़िल में फ़क़ीर ने उर्दू पढ़ी।
मुगालते में लोग हैं, नवाब आया है।।

दरया-वरया कुछ नहीं है, होश में आ "प्रद्युम्न"।
तू रेगिस्तान में है तुझको सराब आया है।।

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