Wednesday, 24 January 2018

नज़्म।



नज़्म क्या है?,
तुम पूछते हो.... 

नज़्म क्या है?,
मैं सोचता हूँ....


लफ्ज़ हैं?, ख़्याल है?
तफ़्सील है?, सवाल है?
जवाब है?, ख़्वाब है?
तसव्वुर है?, सराब है?

क्या है?

ह्म्म्म...क्या है?,
सवाल बड़ा है?

के,
नज़्म आखिर क्या है?

शायद! ग़ालिबन!,

शहर के किसी मोड़ पर,
मुझे देखकर,
वो,

जब झुका देती है गर्दन अपनी,
मुस्कुराते हुए....

गिर आती हैं ज़ुल्फें,
मुक़ाबिल चेहरे के और,
जबीं पर शिकन आ जाती है....


वो लकीरें उसके माथे की,
और तबस्सुम लबों की,
मुझे "श्श्श" कर जाती है,
कुछ पल के लिए..... 

तब शौख मन मेरा,
थम जाता है और
धड़कनें कानों को,

सुनाई पड़ती हैं....

उस रोज़ के उस वक़्त का,
वो पल, वो लम्हा,
नज़्म है...

एक खुशनुमा नज़्म।

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