Friday, 2 February 2018

संभालता है प्रद्युम्न।



कोई तुमको ख़्यालों में पालता है प्रद्युम्न।

पालो, ये अच्छा मुग़ालता है प्रद्युम्न।।


जो कहते हैं मुझसे "बड़े शायर हो तुम"।

ऐसे ही लोगों को टालता है प्रद्युम्न।।


आप क्या कसेंगे मिरि ज़िंदगी पर तंज?

आप जैसे सैकड़ों को संभालता है प्रद्युम्न।।


वाहिद सबब तो मिल जाए शाद होने का।

भीतर-बाहर खुदको रोज़ खंगालता है प्रद्युम्न।।


ज़ाया ना हो पाए दुष्यन्त का अश'आर।

ज़ख़्मी हाथों से पत्थर उछालता है प्रद्युम्न।।


जो भी आता है दश्त में, पंछी उड़ाता है।

थाम अपने पैरों को, बैठालता है प्रद्युम्न।।


और तो कोई हुनर नहीं, बस ये है के ख़ुदको,

हर अहद में धीरे-धीरे ढालता है प्रद्युम्न।।


कई भरम भीतर जिगर के सेंध मारे बैठे हैं।

रुखसारों पर दे तमाचा, निकालता है प्रद्युम्न।।


और शायरी करना ख़ता है, ऐब है  तो हाँ,

ऐसे ढेरों ऐब अदब से पालता है प्रद्युम्न।।

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