Friday 19 January 2018

शायरी नहीं आती।




तोहमत है हमको शायरी नहीं आती।

तुम सारे उस्ताद हो, हमे ही नहीं आती।।


ना तौर, ना तरीका, ना शऊर, ना कुछ।

फिर क्यों ना कहे कोई की नहीं आती।।


संग किताबों के बैठे तो थोड़ा सा फ़न जाना।

आदमियों से पूछते तो कभी नहीं आती।।


गाहे-गाहे, कुछ-कुछ उनकी याद आती थी।

आजकल ये आलम है वो भी नहीं आती।।


दवा तेरी सारी की सारी बे-दवा निकली।

कैसे चारागर हो बे! चारागरी नहीं आती।।


आओ, बैठो, धीरे-धीरे हाल-ए-दिल कहो।

हम को कोई बात समझ में जल्दी नहीं आती।।


कोई ख़लिश होगी सीने में या सुरूर कोई होगा।

बिना बात के किसी आँख में नमी नहीं आती।।


इत्मीनान गर अमीरी का मायना है तो,

किसी फ़क़ीर के घर मुफ़्लिसी नहीं आती।।


ग़ालिब, मीर-ओ-मोमिन, जॉन मुद्दत थे सारे।

फ़िर लौटकर दोबारा कोई सदी नहीं आती।।


उस बारिश को कैसे कोई बारिश कह दे "प्रद्युम्न"।

जिसमें बादल नहीं गरजते और तजल्ली नहीं आती।।

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