Saturday, 13 January 2018

तुम बस बैठी रहना | दिव्यांशु राठोर।




तुम बस बैठी रहना,
बिल्कुल ऐसे ही,
बस बैठी रहना,
मैं तुम्हारी आँखों में देखूंगा,
तुम्हारी आँखों में अपनी हँसी देखूंगा,
तुम मेरी आँखों में तुम्हारी खुशी देखना,
तुम बस बैठी रहना,
बिल्कुल ऐसे ही,
बस बैठी रहना। .

मैं तुम्हारी आँखों में उस डूबते हुए सूरज का प्रतिबिम्ब देखूंगा,
कुछ देर तुम्हारी आँखों में उस सूरज की लालिमा देखूंगा,

तब तक तुम मेरी आँखों में देखना,
तुम मेरी आँखों में
वो ढलती हुई शाम देखना,
तुम मेरी आँखों में
उस शाम में उड़ते हुए
उस पंछी को पंख फैलाते देखना,
बस तुम बैठी रहना,
बिल्कुल ऐसे ही,
बस बैठी रहना। .

तुम मेरी आँखों में वो दरिया देखना,
मैं तुम्हारी आँखों में वो नौका देखूंगा,
तुम उस नौका में
बस मुझे और खुदको पाना,
मैं तुम्हारी आँखों में बैठकर
वो दरिया पार कर लूंगा,
मैं तुम्हारी आँखों में
वो खुशी देखूँगा,
जिसे अक्सर लोग ढूंढा करते हैं,

तुम मेरी आँखों में
हमें उन खुशी के पलों को
महसूस करते देखना,
थोड़ी आंधी भी चल जाये,
या फिर धूल भी उड़ जाए,
बस तुम अपनी आँखे मत मूंदना,
क्योंकि उन आँखों में
मैं अपना जहाँ देखूंगा,
वो जहाँ जिसमें सिर्फ तुम होगी,
और तुम्हारे साथ सिर्फ मैं रहूंगा,
तुम बस बैठी रहना,
बिल्कुल ऐसे ही,
बस बैठी रहना।।

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