कहीं चीखता सन्नाटा होगा,
कहीं खामोश नाच-गाना होगा,
साल तो नया होगा शायद,
हाल वहीं पुराना होगा।
वो गाँव वाले तब भी,
परेशान रहेंगे सरपंचों से,
चूहे साँप की केंचुरी में,
फुसकारेंगे मंचों से,
सपेरो के मुँह में हवा ना होगी,
ना किसी से बीन बजाना होगा,
साल तो नया होगा शायद,
हाल वहीं पुराना होगा।
उन लाल खलिहानो में तब भी,
कपड़े कुछ गंदे लटकेंगे,
कर्ज के निवाले होंगे,
पेड़ों पर फंदे लटकेंगे,
मिट्टी खेलते हाथों को,
आग चिता को लगाना होगा,
साल तो नया होगा शायद,
हाल वहीं पुराना होगा।
किसी बाबा का सच तब भी,
किसी अदालत में नंगा होगा,
जलते धर्म के ध्वज दिखेंगे,
तुष्टीकरण का दंगा होगा,
हैवानियत लाशे जो ढेर करेगी,
हमको ही उठाना होगा,
साल तो नया होगा शायद,
हाल वहीं पुराना होगा।।
वो एक चिड़िया तब भी समाज के,
पिंजरे में फड़फड़ाएगी,
पंख तो होंगे जरूर पर,
खुलकर उड़ ना पाएगी,
पिंजरों के ही दरिंदो से,
उसे खुद ही लड़ते जाना होगा,
साल तो नया होगा शायद,
हाल वहीं पुराना होगा।।
मजहबी सियासते तब भी,
इन घरों में देगी दरार नयी,
सोच तब भी होगी वही,
चाहे आए सरकार नयी,
पैसे के नीचे सच दब जाएगा,
झूठ का अखबारों में आना होगा,
साल तो नया होगा शायद,
हाल वहीं पुराना होगा।
सरहद पर खून बहेगा तब भी,
घरों पर लाशे आएगी,
किसी का बेटा,किसी का भाई,
किसी की चूड़ीयाँ टूट जाएगी,
बेटे की अर्थी को कहीं,
पिता को कंधा लगाना होगा,
साल तो नया होगा शायद,
हाल वही पुराना होगा।।
आशिक बेरोजगार मैकदे में होगे,
जलती सिगरेट, बीड़ी होगी,
कोहरे में मिलता धुआँ दिखेगा,
जल रहीं युवा पीड़ी होगी,
अपनाकर इंसानियत हमें,
युवाओं को बचाना होगा,
साल तो नया होगा शायद,
हाल वही पुराना होगा।।
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