शेर कह रहे हैं, अरसा हुआ है।
कैसे हुआ ये, और क्या हुआ है।।
ज़िन्दगी सी ये ग़ज़ल भी उल्टी-सीधी है।
मक़ता हुआ पहले, फ़िर मतला हुआ है।।
क्यों भाई बनवारी लड्डू बाँट रहे हो?
बेटियाँ तो दो हैं, क्या बेटा हुआ है?
फ़ैल हुआ परिक्षा में मास्टर का बेटा।
चराग तले देखो अँधेरा हुआ है।।
सुर्ख आँखें, बेज़ार चेहरा, बाल तर?
पी है शराब या झगड़ा हुआ है?
सुर्ख आँखें, बेज़ार चेहरा, बाल तर?
पी है शराब या झगड़ा हुआ है?
बाज़ीचा-ए-दिल से आशना हैं हम के,
जुड़ता नहीं जो शिकस्ता हुआ है।।
एक बादल के जिसमे पानी नहीं है।
बड़ी उमीदों से सबने पकड़ा हुआ है।।
छूटेगा जुगनू तब चाँद मिलेगा।
जो भी हुआ है, अच्छा हुआ है।।
कभी माँ ने कहा था "रोना नहीं है"।
तभी से ये चेहरा हँसता हुआ है।।
जब बिक गए अदीब-ओ-मुसन्निफ़ तो सोचा।
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