अपनों में अदावत है, अब गैरों से क्या लेना।
सियाह अपने सवेरे हैं, अंधेरों से क्या लेना।।
जो फूलों को चाहते हैं, वो काँटों से कहते हैं।
हम तो खुशबू ताकेंगे, हमको पहरों से क्या लेना।।
कल सुबह नेता के घर सपेरा आया था।
मैं सोचता हूँ नेता का सपेरों से क्या लेना।।
हम पेड़ों से, दरियाओं से, कोहसारों से बतियाते हैं।
ये लोग तो गूँगे-बेहरे हैं, गूँगे-बेहरों से क्या लेना।।
जिस चेहरे की हसरत थी, वो चेहरा तो चला गया।
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