दुआ आएगी, सलाम आएगा।
किताबों में जब हमारा नाम आएगा।।
उसे हुजरों में बुलाना मुनासिब नहीं।
वो शायर है यारों सर-ए-आम आएगा।।
मसरूफ हैं खुद ही के फसानो में वो।
मुन्तज़िर हैं हम के पयाम आएगा।।
अज़ल से चला है गर सिलसिला-ए-इश्क।
रोज़-ए-महशर को अंजाम आएगा।।
पिरेशनी में हैं तो मशगूल है शहर।
सुर्ख़-रु जो होंगे तो तमाम आएगा।।
उस रोज़ मैकदे में सुबू तक ना आए।
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