Friday, 29 September 2017

सर-ए-आम।



ऐसा नहीं है, के बड़े काम करते हैं।

करते हैं जो भी सर-ए-आम करते हैं।।


यूं तो तुम गालियों के भी लायक नहीं हो।

ये तहज़ीब है हमारी के सलाम करते हैं।।


याद करना, मुस्कुराना और नज़्म कहना।

बगैर तुम्हारे काम ये तमाम करते हैं।।


एक अरसे से भटके हुए हैं ज़ुल्फ़ों में तुम्हारी।

बेकार ही लोग जंगलों को बदनाम करते हैं।।


और उन लोगों से मरासिम मैं रखता ही नहीं हूँ।

आए दिन जो मज़हबी कलाम करते हैं।।

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