Saturday, 23 September 2017

नौका।





मेरे "सब कुछ" में..
मेरे "कुछ" को खोजना,
कठिन है।

कठिन है, क्योंकि
अनहद है "सबकुछ"..
अनंत सागर जैसा...और

और "कुछ" उसमे,
किसी नौका की तरह है,
कागज़ की...

"कुछ" को मैंने ही,
छोड़ा होगा "सबकुछ" में..
बचपन के आसपास...शायद!

अब मैं तैर रहा हूँ "सबकुछ" में..
हांप रहा हूं, डर है..

डर इस बात का,
के कहीं नौका डूब ना जाए...
नौका, मेरे "कुछ" की...

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