ये मशवरा किसने दिया था, दिल लगाने का।।
कोशिशें करते रहो दिल-ओ-जान के रहते।
के इश्क़ कोई मौज़ू नहीं है भाग जाने का।।
आए थे वो आँखों में, रुख़्सत वहीँ से कर देते।
बड़ा शौक़ था तुम्ही को दिल में बसाने का।।
उड़ी-उड़ी सी ये रंगत, पाश-पाश सारे अल्फ़ाज़।
वक़्त हो गया क्या?, उनके महफ़िल में आने का।।
भूल कर भी ख़ुद को कहानी ना समझो।
तुम बस एक किरदार हो उसके फ़साने का।।
शब-ओ-रोज़ हम ख़्वाब में उन्हें याद करते हैं।
फ़नकार को आता नहीं, फ़न भूल जाने का।।
मुक़म्मल जो हो सके, मुहब्बत ऐसी करो।
हक तो ये सभी को है, सपने सजाने का।।
आशिक़ नया, नई आशिक़ी तुम्हे मुबारक़ हो।
हाल कभी पूछ लिया करो, दिलदार पुराने का।।
जिनको मयस्सर है नहीं खुद एक ठिकाना भी।
नज़र उनको आ रहा है हाल-ए-दिल ज़माने का।।
नज़र उनको आ रहा है हाल-ए-दिल ज़माने का।।
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