किसी शख़्स ने शायर से पूछा-
क्यूँ लिखते हो यूँ मुसलसल,
हर एहसास को, ख़्याल को,
लिखते क्यूँ हो शब-ओ-रोज़ तुम,
परवाज़ को, ज़वाल को।
शौक है?, आदत है कोई?
या है तरीका, वक़्त काटने का?
ये कैसी लत है,
जो छूटती नहीं कम्बख्त!
सफ़हे जो सारे गूद दिये हैं,
कौन पढ़ेगा?
शायरियाँ जो अर्ज़ करी हैं,
कौन सुनेगा?
ये कलम जिससे लिखते हो,
क्या खानदानी है?
वालिद अदीब हैं शायद,
या माँ होंगी शायरा.....?
बहुत देर चुप बैठा शायर,
फिर यकदम बोला-
सवाल क्यूँ हैं इतने सारे,
जो पूछ रहे हो तुम मुझसे?
जवाब जानना है मुझको,
शख़्स बोला शायर से...
मुस्कुराया फ़िर शायर...
कुछ पल ठहर कर फ़िर बोला-
दरकार है जवाबों की,
हमको भी मेरे दोस्त!
के सवाल कई दिल-ए-सुखन में भी,
जाने कब से ज़िंदा हैं....
Keep Visiting!
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