Friday, 25 August 2017

डबरा।



-हरिशंकर परसाई


लगभग दो महीनो के लंबे अंतराल के बाद शिरिपुर में मौसम की पहली बारिश ने दस्तक दी थी. जिले समेत प्रदेशभर में पहली बार मौसम विभाग ने यह स्पष्ट कर दिया था कि इस वर्ष बारिश के आसार बेहद कम हैं और अगले कुछ दिनों तक बारिश का कोई नामो-निशान नज़र नहीं आ रहा.

उधर विभाग ने भविष्यवाणी की और इधर इश्वर ने उनके सारे अनुमानों पर ना केवल पानी बल्कि ओले भी बरसा 
दिए. मुसलसल बारिश से जहाँ एक ओर गाँवों में जश्न का माहोल था तो वहीँ दूसरी ओर शहरों में था कीचड़, बैक -वाटर और टर्र-टर्र करते बरसाती मेंढक.

“पानी बरसा टिप-टिप भैया, बड़े दिनों के बाद, मेरे आंगन में हुई वर्षा बड़े दिनों के बाद” कविवर छन्दलाल 
मिसरेवाले अपनी कविता गुनगुनाते हुए घर के बाहर आए.

“वाह! भाई पानी टिप-टिप बरसता है ये हमने आज जाना वरना अभी तक तो हम समझते थे की पानी थड़-थड़  बरसता है” अपने घर के आँगन में खड़े सर्वेश्वर गुप्ता ज़ोर से हँस पड़े.

“गुप्ता जी लगता है कविता आपके समझ नहीं आई” छ्न्द्लाल मुस्कुराए.

“तो समझा दीजिये कविराज” गुप्ता जी ने चाय का कप हाथ में लेते हुए कहा.

“दरसल कविता में हम........

“अरे! छंदु छोड़ो यार तुम भी कहाँ समझाने बैठ गए, गुप्ता तो बस मज़ाक कर रहा है”  बिल्डर मुकेश वर्मा गुफ्तगू में शामिल हुए.

मुकेश जी इस बात से बखूबी परिचित थे की अगर कवि कविता सुनाए तो उसे जैसे-तैसे सुना जा सकता है मगर यदि वह कविता समझाने लगे तो यह किसी त्रास से कम नहीं.

“हाँ, हाँ मैं तो बस ठिठोली कर रहा था” गुप्ता जी ने हिचकिचाते हुए कहा.

“आज की बारिश ने तो दो महीनो का सूखा एक ही बार में धो डाला, क्यों गुप्ता” मुकेश जी ने मुद्दा बदला.

“बिलकुल सही फ़रमाया मुकेश” गुप्ता जी ने चाय खत्म की.

“इसी बात पर आओ प्रवीण भाई की चाय पी ली जाए” छ्न्द्लाल ने कहा.

“क्यों नहीं, आओ भाई गुप्ता एक-एक चाय और हो जाए” मुकेश जी घर से बाहर आए.

कवि छ्न्द्लाल मिसरेवाले, व्यापारी सर्वेश्वर गुप्ता और बिल्डर मुकेश वर्मा बेहद ख़ास दोस्त थे और पिछले आठ 
सालों से श्री-गणेश कॉलोनी में रह रहे थे.

कवि होने के साथ-साथ छंदलाल एक निजि अखबार में आलेख भी लिखा करते थे, इसी से उनका गुज़ारा होता था. सर्वेश्वर जूता-व्यापारी थे और शहर के बाहर उनकी एक बहुत बड़ी जूते-चप्पल की दुकान थी. मुकेश वर्मा पूरे जिले के सबसे बड़े बिल्डर होने के साथ-साथ उन गिने-चुने बिल्डर्स में से थे जो आयकर भरा करते थे. तीनो के काम, अमल और ओहदे मुख्तलिफ़ थे मगर मिजाज़ एक जैसे.

तीनो दोस्त अपने घर से कॉलोनी के बाहर स्थित प्रवीण चाय स्टाल पर चाय पीने और गप्पे मारने के इरादे से 
निकले थे मगर एक गली मुड़ते ही उनका रास्ता पानी से भरे एक बड़े से डबरे ने रोक लिया. डबरे के दोनों तरफ दर्जन भर लोग खड़े हुए थे और सब की नज़रें डबरे पर थीं. सभी सोच में डूबे हुए थे.

“नमस्कार छ्न्द्लाल जी, देखा आपने दो बूँद पानी गिरा नहीं और कॉलोनी के ये हाल हैं” डबरे के उस ओर खड़े
रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर जमशेद ने चिड़ते हुए कहा.

“दो नहीं भाई लाखों बूँद पानी गिर चुका है अभी तक”, मुकेश जी ने मज़ाक किया.

आसपास खड़े लोग हँस पड़े.....

“मज़ाक की बात नहीं है वर्मा जी. आई एम सीरियस”, जमशेद जी गुस्सा गए.

“ओह! आई थॉट यू आर ए रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर” इस बार बारी गुप्ता जी की थी.

“हद्द है!’ जमशेद जी अपने घर की ओर चल पड़े.

“ये तो नाराज़ हो गए” गुप्ता जी और उनके दोस्तों ने जमकर ठहाका लगाया.

“मज़ाक अपनी जगह है गुप्ता जी मगर इस डबरे का कुछ तो करना पड़ेगा ना, अब बच्चे इससे होकर निकलेंगे तो उन्हें इन्फेक्शन हो जाएगा, वैसे भी आजकल फंगल-इन्फेक्शन फ़ैल रहा है”, कॉलोनी की एकमात्र वर्किंग वुमन शर्मीला अवस्थी ने चिंता ज़ाहिर की.

“उसकी चिंता आप ना करें अवस्थी जी मेरे पास ए-वन क्वालिटी के वाटर प्रूफ बूट्स का पूरा स्टॉक घर पर ही पड़ा है. कॉलोनी के सभी बच्चों को डिस्काउंट में दे दिया जाएगा. ठीक है ना”, गुप्ता जी ने स्टॉक क्लीयरेंस करने
का आईडिया समाज सेवा की ट्रांसपेरेंट चादर में लपेटकर मारा.

“ये कॉलोनी रहने लायक ही नहीं बची अब भाईसाहब. ड्रेनेज सिस्टम ही नहीं है डबरे तो भराएंगे ही. पिछले दो सालों से पार्षद को अर्ज़ी दे रहा हूँ मगर वो तो लगा हुआ है नोट छापने में, इस ओर ध्यान ही नहीं देता”, बैंकर बिपिन चौरसिया ने अपनी बात रखी.

“बात तो आपकी एकदम सही है बिपिन भाई. बस इसीलिए शहर की मैन लोकेशन पर बनकर तैयार ही है “दी 
ग्रीन सिटी” अपनी कंपनी का ही प्रोजेक्ट है. कॉलोनी के सभी लोगों को थर्टी परसेंट डिस्काउंट में 2बी.एच.के फ्लैट दिलवाने का वादा करता हूँ मैं”, मुकेश जी ने अपनी प्रॉफिट स्कीम सुनाई.

“ये क्या बकवास कर रहे हो वर्मा, गणेश-कॉलोनी पूरे एरिये की बेस्ट कॉलोनी है. हमारे होते हुए लोगों को किसी 
भी तरह की परेशानी नहीं होगी. हम अभी के अभी इस डबरे पर ईट-पत्थर रखवाने का काम शुरू करवाएँगे ताकि लोगों को आने-जाने में किसी भी तरह की परेशानी ना हो” वार्ड न. 33 के पार्षद गुड्डू तिवारी ने अपने लोगों को आश्वासन दिया.

अपनी बात खत्म कर गुड्डू जैसे ही अपने घर की ओर मुड़ा एक तेज़ आते बाइकचालक ने अपनी गाड़ी डबरे में 
कुदा दी और गुड्डू तिवारी पानी से तर-बतर हो गए.

“अरे! भौंसड़ीके जानता नहीं क्या मैं कौन हूँ! साले हवाई-जहाज़ चला रहा है क्या, कॉलोनी में आना बंद करवा 
दूंगा साले, मूँह तोड़ दूंगा अबकी बार नज़र आया तो”, पार्षद आग बबूला हो उठा.

“देखा आपने, इस तरह की परेशानियाँ भी हो सकती हैं लोगों को” चौरसिया ने गुड्डू को रुमाल देते हुए कहा.

“हाँ चौरसिया जी सही कहा आपने. बल्लू अभी के अभी चौराहे से बेरीकेट्स उठा कर लाओ और इस डबरे के 
दोनों ओर लगा दो. इ! साला रास्ता ही बंद करवा दो” गुड्डू ने अपने सेक्रेट्री कम चेले को आदेश दिया और वहाँ से चलता बना.

“क्या हमारा पर्शासन है, क्या ही है सरकार...डेमोक्रेसी, जिंदाबाद है फिर भी, लोगों का है भंटाढार...कल के 
आलेख का विषय मिल गया. आप लोग ज़रूर पढ़िएगा, बारिश के मौसम में भी मन में ज्वाला उठने लगेगी’ कविवर छ्न्द्लाल बड़ी देर के बाद बोले.

“चलो भाई अब ये डबरा तो हटने से रहा. आओ सब अपने-अपने घर चलें” ,गुप्ता जी ने कहा.

खल्क जिस तेज़ी से इक्कठा हुई थी उसी तेज़ी से गायब भी हो गई. ठंडी हवाएं चलने लगी और डबरा हवाओं संग
मस्ताने लगा. डबरे के दोनों तरफ हाथ में कागज़ की नाव लिए बच्चों की भीड़ जमा हो गई और  कुछ ही देर में डबरा कागज़ की कश्तियों से भर गया.

कुछ देर बाद बल्लू  कुछ लोगों को अपने साथ लेकर डबरे के पास पहुंचा, उसे देखकर सारे बच्चे तितर-बितर हो गए.

बच्चों के जाते ही बल्लू के साथियों ने डबरे के दोनों तरफ बेरीकेट्स लगा दिए जिनपर बड़े-बड़े लाल अक्षरों में लिखा था-

“यह रास्ता बंद है”.


Keep Visiting!

No comments:

Post a Comment

चार फूल हैं। और दुनिया है | Documentary Review

मैं एक कवि को सोचता हूँ और बूढ़ा हो जाता हूँ - कवि के जितना। फिर बूढ़ी सोच से सोचता हूँ कवि को नहीं। कविता को और हो जाता हूँ जवान - कविता जितन...