Monday, 21 August 2017

रात भर देखिए।


आब-ओ-हवा का, धूप का, असर देखिए।

घर से बाहर आइए, शजर देखिए।।


मंज़िलें मिलनी नहीं हैं मुस्तक़िल रहकर।

इक दफ़ा भटककर दर-बदर देखिए।।


और दूसरों से फ़ुरसत गर मिले तुमको।

अपने गिरेबान में झांकिए, अपना घर देखिए।।


पाश-पाश जो दिल हुआ है, ईलाज है सिर्फ़ ये,

कोई ख़्वाब टूटे जोड़ दे ऐसा चारागर देखिए।।


जो चल पड़े बे-ख़ौफ़ होकर, मुकाम पर हैं वो।

आप तो बस बैठिए, "अगर-मगर" देखिए।।


और ख़्वाब, ख़ुदा, इश्क़, आशोब सब है।

मियाँ! बाहर नहीं, अंदर देखिए।।


क्या-क्या है मुहब्बत में, जानना है गर।

सवालात छोड़िए, गुज़रकर देखिए।।


और ज़र्द गर पड़ने लगे, रंग महताब का,

इक तस्वीर लगाकर यार की, रात भर देखिए।।

Keep Visiting!

No comments:

Post a Comment

चार फूल हैं। और दुनिया है | Documentary Review

मैं एक कवि को सोचता हूँ और बूढ़ा हो जाता हूँ - कवि के जितना। फिर बूढ़ी सोच से सोचता हूँ कवि को नहीं। कविता को और हो जाता हूँ जवान - कविता जितन...