आब-ओ-हवा का, धूप का, असर देखिए।
घर से बाहर आइए, शजर देखिए।।
मंज़िलें मिलनी नहीं हैं मुस्तक़िल रहकर।
इक दफ़ा भटककर दर-बदर देखिए।।
और दूसरों से फ़ुरसत गर मिले तुमको।
अपने गिरेबान में झांकिए, अपना घर देखिए।।
पाश-पाश जो दिल हुआ है, ईलाज है सिर्फ़ ये,
कोई ख़्वाब टूटे जोड़ दे ऐसा चारागर देखिए।।
जो चल पड़े बे-ख़ौफ़ होकर, मुकाम पर हैं वो।
आप तो बस बैठिए, "अगर-मगर" देखिए।।
और ख़्वाब, ख़ुदा, इश्क़, आशोब सब है।
मियाँ! बाहर नहीं, अंदर देखिए।।
क्या-क्या है मुहब्बत में, जानना है गर।
सवालात छोड़िए, गुज़रकर देखिए।।
और ज़र्द गर पड़ने लगे, रंग महताब का,
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