Thursday, 17 August 2017

गुलज़ार के लिए।




गांव दीना, डिस्ट्रिक्ट झेलम,
प्रान्त कोई था, देश कोई...
माह अगस्त का, तारीख अठारह,
रोज़ कोई था, वक़्त कोई...

सुजान बी की तबियत बिगड़ी,
यकदम, अचानक, सहसा ही..
फिर दौड़-भाग...और
आपा-धापी, जन्म हुआ एक बच्चे का...

पला-बड़ा वो खेतों में ,
नेहरों में खूब नहाया वो...
चाँद संग खेली आँख मिचोली,
हवाओं में मस्ताया वो...

नन्ही-नन्ही आँखों ने,
मसले बड़े-बड़े देखे...
देखा, उस ओर से हिंदुस्तान,
इस ओर से पाकिस्तान.

आँसूं  डाले गले में अपने,
दर्द सारा दिल में रक्खा..
राफ्ता-राफ्ता..धीरे-धीरे 
 शजर गांव का दरख्त हुआ...

फिर ,चला गया वो शहरों में,
किसी काम की ख़ोज में....
और रंगने लगा वो कारों को,
सुर्ख़, सब्ज़ या सियाह, सफ़ेद....


मिला फिर कुछ अदीबों से,
शोरा से, फनकारों से...
उसने भी फिर कलम उठाई,
और रंग दिए, सफ़हे सारे...


अल्फ़ाज़ झड़े उस कलम से फिर,
जैसे किसी पेड़ के हों पत्ते...
जहाँ गिरे, ज्यों ही गिरे,
नज़्म उगी वहाँ प्यारी सी...


हर्फ़ लिए वो चलते हैं,
सबके मानी हैं उनसे ही...
वो शजर जो कभी दरख्त हुआ था,
आज वही "गुलज़ार" है....


Happy Birthday Sir!

Happy Birthday Gulzar!


Keep Visiting!

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