Wednesday, 2 August 2017

क्या कोई घर मेरा है?



इश्क़ में तेरे हाल हुआ बद से बद्ततर मेरा है।

हम कुछ यूँ बदनाम हुए हैं, चर्चा घर-घर मेरा है।।


वो जो एक कबूतर तुझ तक हर शाम को आता है।

उससे बात किया कर वो, नामा-बर मेरा है।।


मेरे घर की ओर जो तूने, पत्थर फेंका था।

तुझे बता दूँ यार मेरे, अब वो पत्थर मेरा है।।


हर महफ़िल में याद मुझको, बात मेरी करता है।

इस क़दर उसके ज़हन पर असर मेरा है।।


नदामत कतई नहीं, गर मंज़िल नहीं मिले।

मैं शरीक जिस सफ़र में हूँ, वो सफ़र मेरा है।।


मुझे घायल कर तू सलामत है, ये हुनर नहीं तेरा।

तुझे हो ख़बर इस बात की, ये सबर मेरा है।।


रंज हैं कई मगर, सुकून है इस बात का,

देखभाल को मेरी, एक शहर मेरा है।।


आबिद बनकर पास मेरे हर सुबह आते हो,

इश्क़ करते हो मुझ से? या डर-वर मेरा है।।


एहतिराम है उसका दिल में, कोई ख़ौफ़ नहीं मुझको।

ख़ुदा अहबाब है मेरा, मौला रहबर मेरा है।।


तमाम रईसों की अमीरी यहाँ चरम पर है।

मुफ्लिस पैहम पूछ रहा है- "क्या कोई घर मेरा है?"

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