Sunday, 23 July 2017

अदावत में आओ।


दोस्ती में ना सही, अदावत में आओ। 

बागी हो तुम तो बगावत में आओ।।


रफ़ाक़त तो है नहीं, फ़र्ज़-ए-दुश्मनी निभाओ। 

मुहब्बत में ना सही, नफ़रत में आओ। 


पी जाएंगे सब शिकवे घोल कर के जाम में। 

यार कभी वक़्त निकालो, दावत में आओ। 


रहकर मोहज़्ज़ब, इश्क़ कौन कर सका है?

करना है इश्क़ तो शरारत में आओ। 


बातें कई हैं दिल में, गुफ्तगू लम्बी होगी। 

भले देर से आओ, मगर फुर्सत में आओ।


तूम काफ़िर हो! तुम्हें भी याद आएगा खुदा। 

दो-चार अज़ाब तो झेलो, कभी आफ़त में आओ।


मुतमईन हैं ये लोग सारे, जाने कब से। 

यार अब नींद से जागो, हरकत में आओ।


जालसाज़ी, धोखेबाज़ी, ख़ुदपरस्ती भी फ़न हैं। 

छोड़ो ये ईमान-विमान, सियासत में आओ। 

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