Tuesday, 11 July 2017

तिश्नगी में हैं।


दोस्ती, यारी, रफ़ाक़त हर किसी में हैं।
दुनिया-जहाँ के लोग फिर भी बेबसी में हैं।।

बे-चैनी में कट रहे हैं शब-ओ-रोज़ सारे।
सब रईसों की अमीरी, मुफ़्लिसी में हैं।।

दुश्मनी तो फिर भी हमको रास आ गई।
रंज-ओ-गम, शिकवे, गिले सब दोस्ती में हैं।।

मुख़्तलिफ़ हैं मुहब्बत के ये फ़साने सब।
कुछ अधूरे , कुछ पूरे , कुछ हाँ-नहीं में हैं।।

इश्कबाज़ों को नहीं है नफ़रतों का इल्म।
एतबार सारे आशिक़ों के आशिक़ी में हैं।।

पामाल राहों से अलग, जो मैं अकेला चला।
देख मुझ को लोग बोले "आवारगी में हैं"।।

ये हुनर है के सभी को आदाब कहते हैं।
अफ़वाह उड़ी है शहर में "बेचारगी में हैं"।।

अर्श से जो आब बरसा, सब समंदर पी गए।
मुंतज़िर बारिश के सहरा, तिश्नगी में हैं।।
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