गाँव गुरदाखेड़ी, तहसील हातोद, जिला शीरीपुर...
"कुछ दिन का बखत और दीजिये मालिक, इस बार फसल अच्छा हुआ है। बस गटरलाल के आते ही उसे सब बेचकर आपका पैसा दे देंगे" दीपचंद गिड़गिड़ाते हुआ बोला।
"जल्दी करो दीपचंद, जल्दी। अगली बार अगर मुझे पैसा ना मिला तो अपनी ज़मीन भूल जाना" झूलेलाल ज़मीदार ने कहा।
किसान दीपचंद अपने चार बच्चों और पत्नी के साथ पिछले बारह सालों से गुरदाखेड़ी में रह रहा था। इन बारह सालों में उसने सिर्फ़ मुफ़लिसी देखी थी। शादी से पहले दीपचंद किराने की दुकान चलाता था और उसके पिता खेती करते थे। शादी के एक साल बाद ही दीपचंद के पिता धूपचन्द चल बसे और दीपचंद ने दुकान बंद कर खेती शुरू कर दी। दीपचंद अपने खेत में जो कुछ उगाता था वो सब कुछ गटरलाल को बेच दिया करता था और गटरलाल उसे शहर में तिगुने दाम पर बेच देता था।
एक रोज़ मंडी में अपना माल बेचने के बाद गटरलाल चाय-नाश्ते के लिए अपने दोस्त "दिनेश गुप्ता" की दुकान पर पहुंचा।
गुप्ता मिष्ठान भण्डार, जिला शीरीपुर...
दिनेश गुप्ता पिछले 6 साल से गुप्ता मिष्ठान भंडार नामक दुकान को संचालित कर रहा था। यह उसका पारिवारिक धंधा था। दिनेश के पिता बनवारीलाल गुप्ता जीवन भर इसी दुकान पर बैठे और इसी दुकान पर उन्होंने अपने प्राण दिये थे। कथित तौर पर कस्टमर को रसगुल्ले देते वक्त इस संसार मे उनका वक़्त ख़त्म हुआ और वे चल बसे। दिनेश पढ़ाई में तेज़ था मगर पिता के जाने के बाद से ही वो गुप्ता मिष्ठान भंडार की सेवा में जुट गया था।
"का भैया गटरु कितना माल बेच दिया आज" दिनेश ने कढ़ाई से समोसे निकालते हुए कहा।
"जितना लाए थे, उतना बेच दिये" गटरलाल ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
"डिप्लोमेटिक जवाब, क्या बात है भाई", दिनेश मुस्कुराया।
"तुम किसान तो हो नहीं, ये सब माल है किसका, लाते कहाँ से हो गुरु?" उसने आगे कहा।
"ज़रा एक बात बताओ बनिये महाराज, क्या हमने कभी तुमसे पूछा के एक किलो आलू में तुम साला 100 समोसे कैसे बना देते हो?" गटरलाल ने तंज कसा।
"तुम तो भड़क गए यार, अरे छोटू ज़रा एक और चाय लाओ हमारे गटरु भैया के लिए" दिनेश ने बात संभाली।
क्या समोसा वगेरह कुछ लोगे?, दिनेश ने पूछा।
"नहीं" गटरलाल ने टीवी के तरफ देखते हुए कहा।
"टीवी चालू करदें" दिनेश ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा।
दरसअल 1 किलो आलू में 100 समोसे वाली बात ने दिनेश को इस बात का आभास करा दिया था के दोस्त कितना भी कमीना हो उससे अदावत नहीं लेनी चाहिए क्योंकि आपका दोस्त कभी-कभी वो भी जानता है जो आप स्वयं नही जानते।
"अबे अब इतना लाड़ मत दिखाओ बे, जाके टीवी चालू करो और ये आज के बाद सर पर हाथ रखा ना तो तुम्हारे सर पर दो ज़ोर के चमाट लगा देंगे बाई गॉड!" गटरलाल चिढ़ गया।
"अजब चूतिया है , हम इज्ज़त नवाज़ रहे हैं तो साला हमी पर गरिया रहा है" दिनेश ने टीवी ऑन किया।
"गंगोत्री की यात्रा पर जा रही बस खाई में गिरी, बस में सवार सभी यात्रियों की मौके पर मौत। मुख्यमंत्री ने कहा मृतकों के परिजनों को मिलेगा मुआवज़ा"
"आईसीसी चैंपियंस ट्राफी के ग्रुप मुक़ाबके में भारत ने अपने चीर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को 124 रन से हराया, पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने कहा हम अक्सर हारते हैं इसमें नया कुछ भी नहीं। भारत का अगला मैच श्रीलंका से होगा"
"उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री का बयान किसानों के सारे कर्ज़ होंगे माफ़, अन्नदाता अब नहीं करेंगे आत्महत्या"
"सलमान ख़ान की फ़िल्म "ट्यूबलाइट".......
"अबे बंद काहे कर दिया बे, शाहरुख के फैन हो?" पुरु ने अपनी साईकल से उतरते हुए कहा।
पुरु, 17 साल का गबरू जवान जिसे दो ही चीजें पसंद थीं क्रिकेट में कोहली और फिल्मों में खान, सलमान खान।
"हमे पंखा कहता है रुक तुझे बताते हैं" गटरलाल गुस्साया।
"अरे भैया फैन मतलब प्रशंसक" पुरु ने समझाया।
"अच्छा! अच्छा! अब साला ये प्रशंसक किस चिड़िया का नाम है" गटरलाल कंफ्यूज़िया गया।
"छोड़ो यार, ये बताओ टीवी काहे बंद कर दिए" पुरु ने पूछा।
"सुना नहीं उत्तरप्रदेश में किसानों का कर्ज माफ़ कर दिया गया है, हमारा कर्ज़ भी माफ होना चाहिए ना, का कहते हो" इतना कहकर गटरलाल वहां से निकल गया।
"जिस फुर्ती से गया है लगता है 2-3 लाख का कर्ज़ है बेचारे पर" पुरु ने टीवी वापस चालू की।
"हम तो ये सोच रहे हैं कि माल खरीदने-बेचने की प्रोसेस में इस साले ने कर्ज़ कब लिया जो अब ये उसे माफ करवाने चला है" इस बार दिनेश कंफ्यूज़िया गया।
जिला मंडी, शीरीपुर...
"लो भाई गटरलाल भी आ गया, आओ गटरु भाई आओ" मंडी में प्रवेश करते गटरलाल से कुरेशी ने कहा।
"आपको तो पता चल ही गया होगा, मियां , उत्तरप्रदेश में सरकार ने किसानों का सारा कर्ज़ माफ कर दिया गया है" गटरलाल ने सवाल किया।
"हाँ, सुरेशिया ने अभी-अभी बताया, चिंता ना करो गटरु अब हम विरोध करेंगे, प्रदर्शन करेंगे, आंदोलन करेंगे और अपना कर्ज़ माफ करवाएंगे" कुरेशी जोश में आ गया।
अज़ल कुरेशी और सुरेश पटवा गटरलाल के दोस्त थे, वो भी गटरलाल की ही तरह किसानों से माल खरीदकर शहर में तिगुने-चौगुने दाम पर बेचा करते थे।
"जय जवान, जय किसान" गटरलाल ने नारा लगाया।
"मगर हम करेंगे क्या?" सुरेश ने पूछा।
"कहा तो विद्रोह करेंगे, आंदोलन करेंगे, प्रदर्शन करेंगे" कुरेशी ने लोगों को इक्कठा किया।
"मगर मियां कैसे?" गटरलाल ने पूछा।
"विद्रोह करना एक कला है भैया गटरु, हमारे पूर्वजों ने विरोध के बल पर ही आज़ादी पाई। चन्द्रगुप्त मौर्य, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अब्दुल कलाम आजाद, राजगुरु सबने विरोध किया और जीत पाई। वर्तमान में भी हमारे एक घनिष्ट मित्र धनियलाल गुर्जर ने हरयाणा में भयंकर विद्रोह किया और आरक्षण पाया। हम उन्ही के दिखाए मार्ग पर चलेंगे। आप सभी किसानों से दूध, गेहूं, चावल, सोयाबीन, फल, सब्ज़ी ले कर लाएं उनसे समर्थन मांगे हम सब कुछ बर्बाद कर देंगे। बस जलाएंगे, पथराव करेंगे और अपना हक ले कर रहेंगे। हम सब मिलकर इस देश के सबसे बड़े किसान आंदोलन को अंजाम देंगे" कुरेशी ने भाषण ख़त्म किया।
"मगर कुरेशी हम पर तो कोई कर्ज़ है ही नहीं" भीड़ में मौजूद एक शख़्स ने कहा।
"तुम्हारा ऐसा कहना ही तुम्हारी कायरता का सबूत है, यह लड़ाई हमारे किसान भाइयों की है। हम उन्ही के लिए यह विरोध करेंगे। जिस किसी को इससे समस्या है अभी बाहर हो जाए" कुरेशी ने स्पष्ट किया।
"जय जवान, जय किसान"
"ऐ सरकार, लिहाज़ करो, कर्ज़ हमारा माफ करो"
पूरी मंडी नारों से गूंज उठी....।
गांव गुरदाखेड़ी, तहसील हातोद, जिला शीरीपुर...
"गटरलाल भाई फसल कट के तैयार है, सही भाव लगा दो, पैसों की सख्त ज़रूरत आन पड़ी है" दीपचंद ने कहा।
"देखो दीपचंद इस बार मे तुम्हे फ़सल के पैसे नही दूँगा, मगर एक ख़ुशखबरी है जो में तुम्हे देना चाहता हूं" गटरलाल मुस्कुराया।
"वो क्या होती है, जन्म से लेकर आज तक हमने सिर्फ़ दुःख और गरीबी ही देखी है भैया" दीपचंद ने कहा।
"भैया दीपचंद तुम्हारे सारे दुखों को ख़त्म करने के लिए हम आंदोलन करने जा रहे हैं। ज़रा सोचो यदि तुम्हारा सारा क़र्ज़ माफ़ हो जाए तो कैसा हो" गटरलाल ने दीपचंद के कन्धों पर हाथ रखते हुए कहा।
"क्या! ऐसा सच में हो सकत है, हमारा सारा क़र्ज़ माफ़ हो जाएगा" दीपचंद ने पुछा।
"बिलकुल हो सकत है बस हमे तुम्हारा साथ चाहिए। तुम ये फसल हमे दे दो हम इस शहर में ले जाएंगे और बीच चौराहों पर इसे जला देंगे। "विद्रोह करना एक कला है भैया दीपचंद, हमारे पूर्वजों ने विरोध के बल पर ही आज़ादी पाई। चन्द्रगुप्त मौर्य, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अब्दुल कलाम आजाद, राजगुरु सबने विरोध किया और जीत पाई। वर्तमान में भी हमारे एक घनिष्ट मित्र धनियलाल गुर्जर ने हरयाणा में भयंकर विद्रोह किया और आरक्षण पाया। हम उन्ही के दिखाए मार्ग पर चलेंगे। हम सभी किसानों से दूध, गेहूं, चावल, सोयाबीन, फल, सब्ज़ी लेकर उनसे समर्थन मांगेंगे। हम सब कुछ बर्बाद कर देंगे, बस जलाएंगे, पथराव करेंगे और अपना हक ले कर रहेंगे। हम सब मिलकर इस देश के सबसे बड़े किसान आंदोलन को अंजाम देंगे" गटरलाल ने कुरेशी के भाषण को जस का तस दीपचंद के सामने कह दिया।
"मगर फसल बर्बाद करना, आगजनी करना, लोगों को परेशान करना क्या यही विरोध है, अगर हाँ तो ये कैसा विरोध है", दीपचंद ने हैरत से पूछा।
"तुम गाँव से बाहर गए हो कभी?, नहीं ना तो ज़्यादा दिमाग ना लगाओ। शहर में ऐसा ही होता है, ऐसा ही होता आया है और ऐसा ही होगा।", गटरलाल ने समझाया।
गटरलाल की बात मानकर दीपचंद ने अपनी फसल बिना कोई पैसे लिए गटरलाल को दे दी और इस बात का आश्वासन पाकर खुश हो गया की उसका सारा क़र्ज़ इस विद्रोह से माफ़ हो जाएगा। गटरलाल सारी फसल लेकर शहर चला गया।
"भैया दीपचंद तुम्हारे सारे दुखों को ख़त्म करने के लिए हम आंदोलन करने जा रहे हैं। ज़रा सोचो यदि तुम्हारा सारा क़र्ज़ माफ़ हो जाए तो कैसा हो" गटरलाल ने दीपचंद के कन्धों पर हाथ रखते हुए कहा।
"क्या! ऐसा सच में हो सकत है, हमारा सारा क़र्ज़ माफ़ हो जाएगा" दीपचंद ने पुछा।
"बिलकुल हो सकत है बस हमे तुम्हारा साथ चाहिए। तुम ये फसल हमे दे दो हम इस शहर में ले जाएंगे और बीच चौराहों पर इसे जला देंगे। "विद्रोह करना एक कला है भैया दीपचंद, हमारे पूर्वजों ने विरोध के बल पर ही आज़ादी पाई। चन्द्रगुप्त मौर्य, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अब्दुल कलाम आजाद, राजगुरु सबने विरोध किया और जीत पाई। वर्तमान में भी हमारे एक घनिष्ट मित्र धनियलाल गुर्जर ने हरयाणा में भयंकर विद्रोह किया और आरक्षण पाया। हम उन्ही के दिखाए मार्ग पर चलेंगे। हम सभी किसानों से दूध, गेहूं, चावल, सोयाबीन, फल, सब्ज़ी लेकर उनसे समर्थन मांगेंगे। हम सब कुछ बर्बाद कर देंगे, बस जलाएंगे, पथराव करेंगे और अपना हक ले कर रहेंगे। हम सब मिलकर इस देश के सबसे बड़े किसान आंदोलन को अंजाम देंगे" गटरलाल ने कुरेशी के भाषण को जस का तस दीपचंद के सामने कह दिया।
"मगर फसल बर्बाद करना, आगजनी करना, लोगों को परेशान करना क्या यही विरोध है, अगर हाँ तो ये कैसा विरोध है", दीपचंद ने हैरत से पूछा।
"तुम गाँव से बाहर गए हो कभी?, नहीं ना तो ज़्यादा दिमाग ना लगाओ। शहर में ऐसा ही होता है, ऐसा ही होता आया है और ऐसा ही होगा।", गटरलाल ने समझाया।
गटरलाल की बात मानकर दीपचंद ने अपनी फसल बिना कोई पैसे लिए गटरलाल को दे दी और इस बात का आश्वासन पाकर खुश हो गया की उसका सारा क़र्ज़ इस विद्रोह से माफ़ हो जाएगा। गटरलाल सारी फसल लेकर शहर चला गया।
तीन दिन बाद....
"दीपचंद अरे ओ दीपचंद", झूलेलाल ने आवाज़ लगाई।
"हाँ मालिक", दीपचंद दौड़ता हुआ घर के बाहर आया।
"कहाँ है मेरे पैसे, मुझे पता चला है की गटरलाल तीन रोज़ पहले ही तुम्हारे यहां आया था। लाओ मेरे पैसे निकालो", झूलेलाल ने गंभीर स्वर में कहा।
"मालिक पैसे तो नहीं हैं", दीपचंद ने डरते हुए कहा।
"क्या कहा पैसे नहीं हैं! बस बहुत हुआ दीपचंद अब अपनी ज़मीन भूल जाओ" झुलेलाल तनतनाते हुए वहां से चला गया।
दीपचंद अपना सर पकड़कर वहीं ज़मीन पर बैठ गया, उसकी आँखों से आँसुओं की धार बहने लगी और उसके आँसुओं से ज़मीन भीग गई। उसके ज़हन में लगातार यही बात चल रही थी की आखिर उसका कर्ज़ माफ़ क्यों नहीं हुआ?
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