Tuesday, 20 June 2017

कमाल करता रहा।



कुछ इस तरह मैं ज़िन्दगी में कमाल करता रहा।

नए-नए सब रास्तों को पामाल करता रहा।।


हर जगह कुछ दास्तानें मैंने इस तरह छोड़ीं। 

के मैं जहां भी रहा, बवाल करता रहा।।


झूठे जवाबों से जो खुश थे, सब साथ हो गए। 

मैं अकेला रहा मगर सवाल करता रहा।।


नफरतों की ढ़ाल मुझ तक जो लोग लाते रहे। 

मैं मुख़्तसर सा मुस्कुरा कर निढ़ाल करता रहा।।


जो कभी थे ही नहीं मेरे, उन्हें याद कर-करके।

रात सब ग़मगीन, दिन मुहाल करता रहा।।


और धोका देने वाले सारे दोस्त थे मेरे। 

मैं सौदाई, गनीमों का ख़याल करता रहा।।

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