Thursday, 4 May 2017

चंचल।


मैं जो हूँ, "स्थिर" नहीं हूँ।
जो "स्थिर" नहीं हूँ, तो "तय" नहीं हूँ।।
अब जो "तय" नहीं हूँ,
तो "मुक्त" हूँ, "आज़ाद" हूँ।।

बदलता हूँ मैं, मौसम हूँ....
"समान" रहूँगा तो तुम कौसोगे,
बदलते रहना, मेरी फितरत है,
और इस फितरत की तुम्हे आदत है।।

परिंदों ने मुझे हमेशा मुतासिर किया है...
वो ठहरते नहीं हैं एक जगह,
निकलकर नशेमन से बस उड़ते रहते हैं।
इस शज़र, से उस शज़र, इस अब्र से उस अब्र.... 

उन जैसा हो गया हूँ,
"थोड़ा", "पूरा" नहीं...
मैं भी टिकता नहीं एक जगह, 
और ना ये मन टिक पाता है....

मेरा यहाँ-वहाँ होना ही,
असल में, मेरे होने की निशानी है.... 

मैं चलता नहीं, मचलता हूँ।।
कल, मैं आज था,
और आज मैं कल हूँ....
तुम जो कहते हो, सही कहते हो,
मैं "स्थिर" नहीं, मैं "चंचल" हूँ।।

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