साहिल पर बैठ, निगाहों से
मैं क्षितिज को ताका करता हूँ,
उस पार और एक दुनिया है,
बस उसी में झाँका करता हूँ....
वहाँ, जहाँ से आफ़ताब उगता है,
और जहाँ महताब सोता है,
वहाँ, जहाँ अब्र सिये जाते हैं,
और जहाँ आसमान बुना जाता है,
ऐसी एक जगह है, यकीन है मुझे....
वहाँ, जहाँ धरती आसमान से मिलती है,
और जहाँ बारिश नहीं होती,
वहाँ, जहाँ अब्र, अब्र नहीं धुंध कहलाते हैं,
और जहाँ इंद्रधनुष तख़लीक़ होता है,
ऐसी एक जगह है, यकीन है मुझे....
वहाँ, जहाँ आसमान रो पड़ता है,
और आंसुओं का सैलाब आता है,
वहाँ, जहाँ से नदी का सफ़र शुरू होता है,
और जहाँ समंदर की यात्रा ख़त्म होती नज़र आती है,
ऐसी एक जगह है, यकीन है मुझे....
वहाँ, जहाँ शज़र पर शायर के ख़्याल उगते हैं,
और फ़िज़ाओं में नज़्म बहती रहती हैं,
वहाँ. जहाँ हर शख़्स महव-ए-तसव्वुर रहता है,
और जहाँ पर ख़्वाब ज़रा लंबे होते हैं,
ऐसी एक जगह है, यकीन है मुझे....
वहाँ, जहाँ मीर, ग़ालिब, फराज़,
और गुलज़ार रहे....
वहाँ, जहाँ पंत, निराला, दिनकर,
और कुमार रहे....
ऐसी एक जगह है, यकीन है मुझे....
वहाँ, जहाँ मुझ जैसे कोई,
इस तरफ़ ताक रहा होगा,
और जहाँ पर संसार हमारा,
किसी सुख़नवर की कल्पना होगा,
ऐसी एक जगह है, यकीन है मुझे....
फ़लक के ठीक पीछे,
कहीं तो है,ऐसी एक जगह है, यकीन है मुझे.....
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