मेरा थमना ज़रा भी, जिन्हें स्वीकार नहीं है।
ये सब दोस्त हैं मेरे, कोई अग्यार नहीं हैं।।
दवाएं बहुत की, के ख़ुद को काबू में लाएं।
अफ़सोस! के कुछ भी असरदार नहीं है।।
और कोई दूसरा हमे क्या ख़ाक करेगा वश में।
हम पर तो हमारा ही इख़्तियार नहीं है।।
चोट तब लगी थी, दिल अब तक फ़िगार है।
इन आँखों में अब, कोई राज़दार नहीं है।।
और रोते भी हैं, मगर अकेले में यारों।
के इस शायर का कोई ग़मगुसार नहीं है।।
जो आगे हैं हमसे, ख़ुश हैं!, रहने दो।
वो जहां हैं, वो हमारी रहगुज़ार नहीं है।।
और चल रहे हैं अकेले, जानिब-ए-मंज़िल।
हमे अब किसी का इंतिज़ार नहीं है।।
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