नफ़रत, अदावत भुला कर तो देख।
उल्फ़त के नगमे तू गा कर तो देख़।।
शगुफ़्ता हो जाएगी महफ़िल-ए-हयात।
गुल-ए-मुहब्बत खिला कर तो देख।।
तू आबशार है तो कुछ आदत बदल।
नीचे से ऊपर कभी जा कर तो देख।।
हर शब को तू चांदी करता है महताब।
कभी दिन के उजाले में आ कर तो देख।।
ये होगा, वो होगा, क्या होगा सब छोड़।
चश्म-ए-दिल में इक सपना सजा कर तो देख।।
हर शख्स में पोशीदा है शायर के तू।
दिल-ए-गम-ज़दा को "पिला" कर तो देख।।
मिलेगी दुआ हर इबादत से ज़ियादा।
किसी रोते हुए को हँसा कर तो देख।।
रूठ गई है ये जीस्त?, क्या ज़र्द पड़ रही है?
कर कोशिश, मना ले, मना कर तो देख।।
Keep Visiting!
No comments:
Post a Comment