First Step towards Writing is "Write"
-Self
एक समय था परख-परख कर,
हम काव्य को रचते थे.
भारी-भरकम शब्दों को हम,
ठोक-बजाकर रखते थे.
नियम-कायदे भूल-भालकर,
जब हमने कुछ एक लफ्ज़ कहे.
वही लफ्ज़ जब अल्हड़ होकर,
अंतर्मन की ध्वनि बने,
तब जाके कहीं लगा हमे भी,
हाँ भैया, हम कवि बने.
नदि किनारे बैठ-बैठ,
दरख्तों के संग लेट-लेट
कुछ नया कहीं पड़ा मिला तो,
झट से हमने लिया समेट.
यहाँ-वहां से पाया जो कुछ,
वो सब हमने छोड़ दिया.
भीतर की बैचेनी को जब,
समक्ष लोगों के खोल दिया,
हर पाबन्दी से मुक्त हुए,
कलमकार हम तभी बने.
तब जाके कहीं लगा हमे भी,
हाँ भैया, हम कवि बने.
जोड़-तोड़ का दौर कभी था,
आजकल वो लद गया.
चार खयालों को लिखते ही,
बन जाता है छंद नया.
अल्फाजों की खोज नहीं,
अब खुद चौखट तक आते हैं,
खोल मगज के दरवाज़े,
हम सबको भीतर ले आते हैं.
विचारों से शब्दों तक सबके,
जब करता-धर्ता हम ही बने,
तब जाके कहीं लगा हमे भी,
हाँ भैया, हम कवि बने.
जो देखा,सुना,जाना,पहचाना
बस वही महसूस किया,
जो कुछ भी महसूस किया,
उसे कविता का फिर रूप दिया.
जो कुछ भी नयनों में आया,
और जाकर दिल पर राज किया,
कुछ-कुछ ने मुस्कान नवाज़ी,
कुछ ने दिल हताश किया.
जब शब्दों से ही ख़ुशी मिली,
वे ही आँखों की नमी बने,
तब जाके कहीं लगा हमे भी,
हाँ भैया, हम कवि बने.
खुद से ही बतियाते हैं हम,
हम खुद को समझाते हैं,
शेर,ग़ज़ल के हर आखर में,
स्वयं को लिख-लिख जाते हैं.
व्यथा, ख़ुशी, उल्लास, उमंग,
सबकुछ मेरा होता है,
मेरे दुःख में, हर अक्षर मेरा,
फूट-फूट कर रोता है.
मुझको पढ़कर जब दिल में तेरे,
मेरी ही एक छवि बने,
तब हाथ उठाकर बस कह देना,
हाँ भैया, तुम कवी बने.
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