Thursday, 22 December 2016

निकलों घरों से।


"We could never have loved the Earth so well if we had no childhood in it"

-George Eliote 


A contemporary Short Poetry Specially For Children.


टीवी को तकते हो,
घरों में तुम अपने
बाहर तो निकलो, बहारें आई हैं।
मोबाइल निहारते हो, घरों में तुम अपने
खिड़कियां तो खोलो, फ़िज़ाएँ आई हैं।।


राह तकती तुम्हारी, सड़कें सुबह को,
वो बल्ला, वो बॉलें निराश पड़े हैं।
मन ही मन उड़ते हो,
घरों में तुम अपने
पंख तो फैलाओ,आसमान खुला है।।


पत्ते भी ताली बजाते हैं, सुनो तो।
परिंदे भी सुर में गाते हैं, सुनो तो।।
सुनते हो खट-पट।
घरों में तुम अपने,
मीत भी गीत सुनाते हैं, सुनो तो।।


सिक्सर्स अब लगते हैं मोबाइलों में सारे।
गोल-पोस्ट तुम्हारा, 
आई-पेड में बना है।
बाहर निकल अब दौड़-भाग मचा दो,
तुम्हारे कदमो का मैदानों को इंतज़ार बड़ा है।।


The Following Poem is Specially Written for A Teen Book "Dying To Live" Written by 
Monisha K Gumber And is Published in it. The Author is an Indian but lives in Bahrain.

The very interesting Teen book is available on Amazon.
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Keep Visiting!


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