Sunday, 18 December 2016

कुमार गा रहा है।

The following Poem is based on Interactions and the live show Performed by Dr. Kumar Vishwas At Indore Literature Festival 2016.


With Due Respect To Him..............



सफल कविता वह है जिसमे मुहावरा बनने की क्षमता हो.

-डॉ. कुमार विश्वास 


ज़मीं पे ये जाम ढोले जा रहा है.
फिज़ाओं में नशा घोले जा रहा है.
खल्क चहुँ ओर खड़ी है,माहौल रसिक हुआ जा रहा है
मैकशों सुनो, के कुमार गा रहा है.

अल्हड़ता से यथार्थ बतला रहा है.
बैचेनी को सबकी बहला रहा है.
कभी पलकें भिगाता, तो कभी गुदगुदा रहा है.
मैकशों सुनो, के कुमार गा रहा है.

हर दिल की कविता खुद गा रहा है.
गुल्ज़ारों से अल्फाजों को ला रहा है.
ये कौन है जो एहसासों को छुए जा रहा है.
मैकशों सुनो, के कुमार गा रहा है.

चन्द्र,रात्री से रुकने को कह रहा है.
मन, शीश से झुकने को कह रहा है.
हाथ उठते हैं महफ़िल में खुद-ब-खुद,
इनपर शब्दों से जादू किए जा रहा है 
मैकशों सुनो, के कुमार गा रहा है.

निराला को, बच्चन को पढ़े जा रहा है.
भावनाओं को गीतों में गड़े जा रहा है.
ये अनुभव है, जो अनुभूति पढ़ पा रहा है.
मैकशों सुनो, के कुमार गा रहा है.

भटकों को मार्ग दिखला रहा है
भूलों को भाषा से मिलवा रहा है.
हर व्यक्ति है मुग्ध, बस सुने जा रहा है.
मैकशों सुनो, के कुमार गा रहा है.

अल्फाजों के अमलतास और छंदों के सुन्दर पलाश 
जो मुरझा गए होकर हताश
आज उन्ही गुलों को ये गुलज़ार किए जा रहा है.
मैकशों सुनो, के कुमार गा रहा है.

आज रगों में, रुधिर से ज़्यादा
विश्वास की वाणी का असर बह रहा है
राष्ट्र की धड़कन से निस्बत है ऐसा,
के उसे भी ये गज़लों में पढ़े जा रहा है
मैकशों सुनो, के कुमार गा रहा है.

Keep Visiting!

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