Sunday, 20 November 2016

तब शहर हमारा जागा था।

वर्ष 2009 में अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित फिल्म गुलाल के लिए  मशहूर गीतकार और रंगमंच कलाकार पियूष मिश्रा ने एक गीत रचा था. जिसका नाम था "जब शहर हमारा सोता है" पियूष साहब ने यह गीत दिल्ली में हुए घिनोने सामूहिक बलात्कार की तर्ज़ पर लिखा था. उन्होंने बखूबी बताया के किन हालातों में एक शहर सोता रहता है. उनके लिखे उसी गीत से प्रेरणा लेकर मैंने लिखी है यह कविता जिसका शीर्षक है
"तब शहर हमारा जागा था". इस कविता की पृष्ठभूमि हाल ही में आए सरकार के एक बड़े फैसले पर रची गई है.


With Due Respect To Him...........



एक सुबह की बात बताएं, एक सुबह की
जब शहर हमारा जागा था
वो सहर गज़ब की

अरे! एक सुबह की बात बताएं, एक सुबह की
जब शहर हमारा जागा था
वो सहर गज़ब की

उस भोर परिंदे चहकें थे
उस भोर मेघ भी बहके थे
उस भोर धुंध भी छाई थी
आभा झुण्ड में आई थी
उस भोर ये गलियां
रगड़-रगड़ कर खूब नहाई रे!
उस भोर शहर में
ख़ुशी की आफत आई रे!

जिसको देखो चिंता में
कोई हल नहीं था "गीता" में
और हर मन में बेसब्री थी
घर-घर में अफरा-तफरी थी
जब बिना बात के गरिया कर
हर कोई सड़क पर भागा था
तब शहर हमारा जागा था
तब शहर हमारा जागा था

उस रोज़ ये सड़कें कापिं थीं
हर धड़कन धड़ की हांपी थीं
हर कोई खड़ा था लाइनों में
और दर्द उठा स्पाईनो में
उस रोज़ सर्द से मौसम में
धरती घबराई रे!
उस रोज़ शहर में
ख़ुशी की आफत आई रे!

छा गई घनघोर बला
और आरोपों का दौर चला
बस, ट्रेन और नुक्कड़ पर
बस इसी बात के चर्चे थे
बाजारों में ताले थे
और खर्च हुए सब खर्चे थे
जब नमो-नमो के नारों से, मुरझाया सा रागा था
तब शहर हमारा जागा था
तब शहर हमारा जागा था

उस रोज़ देश की घाटी में 
माहोल शांत सा हो गयो थो 
और बिना बात की हिंसा का भी 
तुरंत निवारण हो गयो थो 
तारो-ताज़ा हो गई जमीं और तारो-ताज़ा हुई हर दिशा 
बड़े वक्त के बाद किसी ने ऐसी चाय बनाई रे!
उस रोज़ शहर में 
ख़ुशी की आफत आई रे!

खाली जेबों वाले सारे 
मस्त चेन से सो रए थे और 
जिन पे लाल-पिला था 
वो लाल-पीले ही हो रए थे 
ईमान के बाज़ारों में 
जब बेईमान हो गया नागा था 
तब शहर हमारा जागा था 
तब शहर हमारा जागा था

Also read "jab shehar hmaaraa sotaa hai" 

by Piyush Mishra here-

http://www.hindilyrics.net/lyrics/of-Sheher....%20Tab%20Sheher%20Hamaara%20Sota%20Hai.html


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