Thursday, 29 September 2016

मैं और कोई नहीं।



कितने उबाऊ होते हैं,
ये काम-काज, रोज़मर्रा के..
हर रोज़ एक जैसे, एक ही तरह के..
बू आती है उनके कपड़ों से अब तो,
नजाने कितने दिन हुए, बदले हुए। 

मगर शब, जो मिरे अकेलेपन के साथ रहा करती है,
कई गुना बेहतर है,
क्योंकि, उसके पास "परिवर्तन" है।  
वो हर दिन इक नया खयाल लेकर आती है,
फिर हम साथ विचार करते हैं उस पर.. 
मैं अक्सर जीत जाया करता हूँ विवादों में,
शब बोलती नहीं, बस सुनती है मेरी बचकानी बातों को। 

इक रात में घर लौटा,थका-हारा सा.. 
देखा के नींद पड़ी थी बिस्तर पर पहले से ही,
और कह रही थी के-
"आओ मेरी बाहों में और आराम कर लो, कुछ पल।" 
इससे पहले के मैं खुद को, नींद को सौंपता।।
एकाएक किसी ने मेरा हाथ पकड़ा,
और झंझोड़ कर रक्ख दिया, पूरा का पूरा।

नींद भाग खड़ी हुई, डर के मारे..
और मुझे भी डरा गई, कमबख्त।
मैं कुर्सी पर जाकर बैठ गया,
और सहमी हुई नज़रों से आस-पास देखने लगा.. 
सिहरन लगातार मेरे ज़हन के भीतर गोचे लगा रही थी। 
कुछ पल और निहारने के बाद मुझे मालूम हुआ,
के वहां "कोई नहीं" था।
कुछ ना होते हुए भी, "कोई नहीं" बड़ा ताकतवर था। 

मैं कुछ बोलता इससे पहले ही उसने शोर मचाना शुरू कर दिया,
बड़ा डरावना था वो, और बड़बोला , मेरी मानिंद।
वो मुसलसल मेरे पास आ रहा था,
धीरे-धीरे उसने मुझे छूना शुरू कर दिया।
मैं भयभीत था, अकेला था... 
कुछ एक आवाजें थी साथ में, मिरे आसपास कहीं,
मगर डरती हैं वो भी उस "कोई नहीं" से। 

मैं बोलता भी तो क्या? और कैसे?
रह-रह कर नज़र उसके भाई "सन्नाटा" पर जाती थी,
जो ठीक उसके पीछे ही खड़ा था,
वो भी खतरनाक था, अपने भाई की तरह। 
पल भर में उसने मेरे ज़हन पर कब्ज़ा कर लिया,
और भीतर छिपे हर्ष, उल्लास और सकारात्मकता 
को मौत के घाट उतार दिया। 

पहले भी कई दफ़ा, ये दोनों मेरे सामने आए थे,
और हर बार भगाया था मैंने इन्हें। 
मगर आज वालिद साथ हैं इनके,
बाहर ही खड़े हैं जनाब, काली शेरवानी में.. 
अनहद कद, सियाह शक्ल और डरावना व्यक्तित्व,
नाम है "तमस"

ख़याल जिन्हें शब लाई थी,वो दोस्त हैं मेरे,
साथ ही हैं, मगर वो दोगले हैं,
मेरे अपने ख़याल, उस शब मेरे दुश्मनों के साथ थे। 
सिहर चुका था, सहम चुका था भीतर तक... 
मेरे अपने खयाल मेरे खिलाफ थे। 

जल्द ही उन भाइयों ने मुझे घेरना शुरू कर दिया,
मेरी पेशानी पर पसीने की आबजू सी बहने लगी.. 
वो करीब आ रहे थे और मैं निष्क्रिय होता जा रहा था,
मेरी हालत खराब थी, बेहद ख़राब थी। 
"कोई नहीं", "तमस", "खयाल" सब हंसने लगे,
मेरा माखोल उड़ाने लगे.. 

वो जान चुके थे, के मेरी हार तय है.
मगर वे अनजान थे.. अनजान थे इस बात से,
के कोई था जो इन सब पर भारी था। 
मेरा जिगरी, मेरा यार, मेरा सच्चा मित्र,
जो मेरे भीतर ही रहता है.. 
मेरे अन्दर, मेरे पास यहीं मेरे ह्रदय के बीच वाले माले पर। 

वो कभी-कभी ही बाहर आता है,
उसे बुलाना नहीं पड़ता,
वो आजाता है खुद-ब-खुद, अपने मित्र को हारता देख.. 

इससे पहले के मैं हार कर, मूर्छित होकर गिर पड़ता,
वो मेरे अंतर्मन को चीरता हुआ,
अचानक बाहर निकल आया.. 
उसके आते ही मैं चिल्ला पड़ा,
और सब भाग खड़े हुए, सब के सब.. 

"तमस" नहीं भागा हालांकि,
मगर हाँ झुक गया वो मेरे दोस्त के सामने,
बखत है उसकी एहसासों के बाज़ार में। 
"खयालों" को भी एहसास हुआ अपनी भूल का,
माफ़ी मांगी मुझसे, अब साथ हैं मेरे वो भी... 

सच, कुछ तो बात है मेरे इस मित्र में,
मेरा एकमात्र विश्वसनीय दोस्त,
मेरा अपना "विश्वास"... 
प्यार से कहूँ तो "आत्मविश्वास"

सबके जाते ही, नींद वापस आ गई दबे पाँव,
और मैं चला गया उसकी बाहों में.. 
सो गया गहरी नींद में, मैं तो,
मगर विश्वास अब भी जाग रहा था,
कहीं और नहीं, यहाँ मेरे अन्दर,
मेरे पास, ठीक मेरे दिल के बीच वाले माले पर।

Keep Visiting!








No comments:

Post a Comment

पूरे चाँद की Admirer || हिन्दी कहानी।

हम दोनों पहली बार मिल रहे थे। इससे पहले तक व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर बातचीत होती रही थी। हमारे बीच हुआ हर ऑनलाइन संवाद किसी न किसी मक़सद स...