सालों पहले पढ़ा था "Success Is A Journey Not A Destination" आज समझा हूँ।
मेरी कल्पना में एक सफर है,
जिसमे मंज़िलें शामिल नहीं।
होती भी हैं अगर कहीं,
तो मुझे हासिल नहीं।।
मंज़िलें,शायद वही जहां,
इंसान थम सा जाता है।
उपलब्धियां गिना - गिना कर पगला,
खुद को सफल बताता है।।
उस जगह तक फैला हुआ है,
नज़रें जहां तक जा सकें।
क्या है कोई इतना सफल?
के मिट्टी क्षितिज से ला सके।।
आफताब लटका है फलक पर।
काश! ज़मी पर गिर कर आ सके।
क्या है कोई इतना सफल?
के सूरज से किरणे ला सके।।
मिल गई मंज़िल अगर तो,
लालसा का अंत है।
और लालसा जो ख़त्म हुई,
तो फिर पतन तुरंत है।।
तालाब सा अब रह रहा है।
कहां गया वो रत्नाकर?
लहरें जिसमे उठती थीं,
सब दरिया मिलती थी आकर।।
आँखों में बस सफर रहे।
लक्ष्य की फ़िक्र नहीं।।
रास्तों पर कदम चलें।
गंतव्य का ज़िक्र नहीं।।
हिचकोलों का मज़ा तो ले,
भूल जा किनारों को।
अब भूल जा नज़रिये को,
और नज़र में रख नज़ारों को।।
रास्ते क्यूँ पूछना,
जब मंज़िलें है ही नहीं।
और यदि वो है कहीं,
तो सफर तेरा, सफर नहीं।।
Keep Visiting!
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