I have never started a poem yet whose end I knew.
-Robert Frost
किनारे पर ही है कश्ती तेरी।
मान मेरी मंझधार नहीं।।
तेरी कमज़ोरी तुझमे ही है।
बस तुझे स्वीकार नहीं।।
जा भीतर भ्रमण कर आ।
मन को बैठा उसे समझा।।
बहला उसे, फुसला उसे।
जो गाँठ हों, सुलझा उन्हें।।
धड़कने कुछ कह रही हैं।
धमनियों में बह रही हैं।।
दर्द वो भी सह रही हैं।
हाँ मगर वो बह रही हैं।।
तेरे भीतर एक.राज़ होगा।
जो ढूंढे तो एहसास होगा।।
फिर तू ही तेरा ख्वाब होगा।
जीवन का एक अस्बाब होगा।
सफल जो तेरी खोज होगी।
बस समझ ले मौज होगी।।
हर दिशा रंगीन होगी।
खुशनुमा ज़मीन होगी।।
आकाश फिर अंगड़ाई लेगा।
नीलम सा नीला दिखाई देगा।।
वृक्ष भी विक्षिप्त होंगे।
तैयारियों में लिप्त होंगे।।
जो आएगा तू खुद से मिलकर।
आनंद से ,फूलों सा खिलकर।।
हर माह फिर जून होगा।
तन-मन तेरा मानसून होगा।।
भरे-भरे तालाब होंगे।
नदियों में सैलाब होंगे।।
काली, घनी हर रात होगी।
सुंदर सुनहरी प्रभात होगी।।
बादल गरज कर बज उठेंगे।
नभ इंद्रधनुष से सज उठेंगे।।
ख़ुशी होगी,सुकून होगा।
तन-मन तेरा मानसून होगा।।
जंगलों में जश्न होगा।
हर कोई मस्त-मग्न होगा।।
मयूर का जब नृत्य होगा।
हर पल मनोरम दृश्य होगा।।
पत्तियों का संगीत होगा।
हर पक्षी तेरा मीत होगा।।
जोश होगा , जुनून होगा।
तन-मन तेरा मानसून होगा।।
चिड़ियाओं की चहक होगी।
माटी की सोंधी महक होगी।।
बादल-भानु में करार होगा।
हर दिवस त्योहार होगा।।
गिरिराज भी संतुष्ट होंगे।
पशु-पक्षी चुस्त होंगे।।
बादल जब नभ में भगेगा।
पवन को देखा जा सकेगा।।
तू प्रकृति के समीप होगा।
कल्पना के करीब होगा।।
नैसर्गिक एक स्पर्श होगा।
फर्श भी जब अर्श होगा।।
तू अकेला ही फिर मस्त होगा।
हर दर्द तेरा पस्त होगा।।
सत्य तेरा हर काश होगा।
तू क्षितिज के पास होगा।।
कुछ पल सही ,तू आज़ाद होगा।
न रोक टोक होगी।।
न कोई कानून होगा।
तन-मन तेरा मानसून होगा।
इंदौर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका राइज़िंग लिटेरा द्वारा आयोजित की गई प्रतियोगिता में जीत के बाद इस कविता को अगस्त 2016 अंक में प्रकाशित किया गया।
पूरी पत्रिका यहां उपलब्ध-
Keep Visiting!
No comments:
Post a Comment