ये कविता पूर्णतः काल्पनिक है।
यहां एक कवि के सबसे पक्के और ज़रूरी दोस्त कलम और कागज़ के बीच हुई बातों को लिखा गया है।
आशा है कागज़ और कलम का ये मानवीकरण आपको पसंद आएगा।
"My Pen & Paper Causes A Chain Reaction, To Get Your Brain Relaxing."
- Eminem
आसपास की खट-खट,
जब-जब खामोशी में बदलती है.
रफ़्तार साधती घड़ी की सुइयां,
अहिस्ते से चलती हैं.
थक-हार के आफताब जब,
आफाक तले सो जाता है.
आँखें खोलकर उल्लू,
अपनी चोंच से पांख खुजाता है.
महताब लिए तारों की टोली,
जब अम्बर में जश्न मनाता है,
गीत बड़े चुप-चुप से, सन्नाटा.
संग "बाद" के गाता है.
जब चार-दिवारी में, कोई अकेला
ख़याल टटोले जाता है.
और देख सफहा कोई कोरा,
दिल कलम उठाने जाता है.
बस तभी ज़हन में,
कल्पना का इंद्रधनुष खिल जाता है.
थक-हार के आफताब जब,
आफाक तले सो जाता है.
आँखें खोलकर उल्लू,
अपनी चोंच से पांख खुजाता है.
महताब लिए तारों की टोली,
जब अम्बर में जश्न मनाता है,
गीत बड़े चुप-चुप से, सन्नाटा.
संग "बाद" के गाता है.
जब चार-दिवारी में, कोई अकेला
ख़याल टटोले जाता है.
और देख सफहा कोई कोरा,
दिल कलम उठाने जाता है.
बस तभी ज़हन में,
कल्पना का इंद्रधनुष खिल जाता है.
कागज़ और कलम की बातें
तब सुनने में आती हैं।
कागज़ फड़फड़ाता है
कलम इतराती, शर्माती है।।
दिल से कागज़ शायर थे,
खुद से पढ़कर कुछ शेर पढ़े-
"मजबूरी को मेरी, मेरा मुकद्दर समझ बैठी.
जो तुम्हे सुलझाने आया था,
तुम उससे ही उलझ बैठी.
बंद डायरियों में रहता हूँ,
बस इसी इन्तिज़ार में.
के आकर मेरे पास तू मुझको,
हर्फ़-ए-दिल नवाज़ दे.
दिल से कागज़ शायर थे,
खुद से पढ़कर कुछ शेर पढ़े-
"मजबूरी को मेरी, मेरा मुकद्दर समझ बैठी.
जो तुम्हे सुलझाने आया था,
तुम उससे ही उलझ बैठी.
बंद डायरियों में रहता हूँ,
बस इसी इन्तिज़ार में.
के आकर मेरे पास तू मुझको,
हर्फ़-ए-दिल नवाज़ दे.
कुछ कहे बिना, बस देख मुझे,
गर अलफ़ाज़ पास ना हो,
मैं सच्चा परवाना हूँ तेरा,
मैं एहसास-आशना हूँ.
बिन तेरे कोरा-कोरा कोई,
पन्ना बनकर रह जाऊँगा.
आज भी हूँ शायर, पर
तेरे आने से शायर-ए-आज़म बन जाऊँगा.
तेरे आने से शायर-ए-आज़म बन जाऊँगा.
कागज़ के शेर रुहानी सुनकर
Keep Visiting!
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