Thursday, 21 January 2016

माता-पिता के लिए।

   

  आकाश से आती हैं जैसे।
     ठंडी-ठंडी ओस की बुंदे।।
नन्हे-नन्हे बच्चे।
आते हैं आँखें मूंदे।।

इन बूंदों को सँभालने वाली ।
वो कोमल से पत्तियां।।
बन जाती है नजाने क्यूँ।
जीवन की आपत्तियां।।

गोद में जिनकी किया।
इस जीवन का आगाज़।।
लगती है नजाने क्यूँ।
कर्कश उनकी आवाज़।।

दुःख हमारे उनके आंसू।
ख़ुशी हमारी,उनके चेहरे की मुस्कान।।
करते नहीं नजाने क्यूँ। 
हम उनका ही सम्मान।।

हमें खिलाया फिर खाया।
हमे सुलाकर सोए थे।।
खुद की उन्हें फिकर कहां थी।
वो तो हम में ही खोए थे।।

इस धरती पर कुछ लोग।
अजब भ्रम में रहते हैं।।
जिनके शीश पे बैठे हैं।
उन्हें ही बोझ कहते हैं।।

अरे!ओ नासमझ समझदारों।
बिना किराय के किरायदारों।।
निचले क्रम की ऊँची सोच वालों ।
मुफ़्त सुविधाओं के खरीददारों।।

उनका दिल जो दुःख गया।
तो उसका दिल भी दुखता है।।
और उसका दिल जो दुःख गया ।
तो पतन फिर न रुकता है।।

दर्द देकर उनको तुम।
अगर चैन से बैठे हो।।
मन को अपने और हृदय को।
पाषाण बनाए बैठे हो।।

गणेश जी के वो तीन चक्कर।
क्या याद दिलाते हैं?।।
मात-पिता के चरणों में।
तीनो लोक समाते हैं।।

जिस दिन तुम्हारे कर्मों से।
उनका मर्म खुश हो जाएगा।।
जीवन रुपी घड़ा तुम्हारा।
अमृत से भर जाएगा।।

Keep Visiting!

No comments:

Post a Comment

पूरे चाँद की Admirer || हिन्दी कहानी।

हम दोनों पहली बार मिल रहे थे। इससे पहले तक व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर बातचीत होती रही थी। हमारे बीच हुआ हर ऑनलाइन संवाद किसी न किसी मक़सद स...