Saturday 13 October 2018

Death Of A River | एक नदी की मौत।



यह बात है एक गांव की, इसी दहर के इसी ग्रह के एक गांव की। मत पूछो किस देश की, मत पूछो किस स्टेट की। बस इतना कि बात है, बात है एक गांव की।

उस गाँव में एक लड़की थी, चंचल, निर्मल और यायावर। नाम था उसका "नदिया"। नदिया गांव में आने वाली पहली शख़्स थी। एक तरह से नदिया ने ही अपने हाथों से गांव को खुशनुमा और समृद्ध बनाया था।

हवा, पेड़, जानवर, पक्षी, फ़ूल, गुल, गुलशन यह सब बाद में आए। नदिया के बाद। लेकिन आने के कुछ रोज़ बाद ही सब अच्छे दोस्त बन गए। पक्के दोस्त। बेस्ट फ्रेंड्स। सब साथ मिलकर गांव में रहते, खाते-पीते, खेलते, काम करते और खुश रहते। सबके काम बंटे हुए थे। पेड़ का काम हरियाली लाना। फूलो का काम खुशबू बनाना, हवा का उसे फैलाना। जानवरों और पंछियों का काम था गांव की रक्षा करना, किसी भी बाहरी ताकत से।

यूं तो नदिया सबको बहुत प्यार करती थी लेकिन उसका प्रेम पेड़ के लिए सबसे अधिक था। पेड़ हमेशा नदिया के पास ही रहता, उसके किनारे। जहां जहां नदिया जाती, वहां वहां पेड़ आता। दोनों एक दूसरे के पूरक। जैसे जन्म और म्रत्यु। नदिया पेड़ को पानी देती और पेड़ नदिया के लिए बारिश लाता। "बारिश" नदिया की मनपसन्द चीज़, जिसे पेड़ बादल से मांग कर लाता था। पेड़ का सारा जमाल, सारी खूबसूरती भी नदिया से ही थी। पूरे गांव को पेड़ और नदिया का मरासिम, उनके बीच की मुहब्बत मालूम थी। गांव में मौजूद हर एक शख्स की ज़िंदगी खूब बसर हो रही थी और यह देख गांव को रचने वाला, वो रंग साज़ , वो मुसव्विर, वो शायर जिसे हम खुदा कहते हैं यह देखकर बेहद खुश था।

लेकिन कहते हैं ना, कुछ भी स्थिर नहीं रहता, कुछ भी हमेशा नहीं रहता। गांव की खुशियों को अभी किसी की नज़र लगना बाकी थी।

एक रोज़ मौला जाने कहाँ से "बस्ती" नाम की एक शख्स ने गांव में दस्तक दी। जानवर और पंछी सतर्क हो गए और तुरंत यह बात नदिया को बताई। उदार चरित्र और साफ दिल रखने वाली नदिया ने पूरे एहतिराम के साथ बस्ती का गांव में इस्तक़बाल किया। बिया, तोता, नीलकंठ, गौरैया आदि पंछीयों, कुछ जानवरों और हवा ने नदिया को समझाने की कोशिश की कि बस्ती विश्वास करने योग्य नहीं है। उसे गांव में आने की इजाज़त ना दी जाए। लेकिन हाय! रे अच्छाई। नदिया नहीं मानी और बस्ती को गांव में रहने दिया। बस्ती अपने तमाम साज ओ सामान के साथ नदिया के पास ही एक टैंट लगाकर रहने लगी। कुछ दिनों तक सब ठीक चला। बस्ती गांव में रम गई। जानवरों, पंछीयों, हवाओं और फ़ूलों ने भी राफ्ता राफ्ता बस्ती को कुबूल कर लिया। लेकिन बोया बीज बबूल का तो आम कहाँ से होए।

बस्ती की नज़र उसके आने के बाद से ही पेड़ पर थी। नदिया के पेड़ पर। उसपर लगने वाले चमकीले, रसदार, लज़्ज़त से भरपूर फलों पर, उसके महकते फ़ूलों पर, उसके गुंचों, उसकी शाखाओं पर। शुरू में तो वह कभी पेड़ से फल मांगती तो कभी फ़ूल, कभी शाख मांगती तो कभी वरक। धीरे-धीरे उसकी ख्वाइशें, उसकी इलत्जाएँ बढ़ने लगीं। और बढ़ते-बढ़ते यह कब लालच या ग्रीड बन गईं, उसे(बस्ती को) मालूम ही नहीं चला।
एक रात बस्ती की बुद्धि भ्रष्ट हो गई ठीक उस शख्स की तरह जिसने हर रोज़ एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को सिर्फ इस लिए काट दिया क्योंकि उसे लगा कि अगर यह मुर्गी एक दिन में एक अंडा देती है तो एक बार में काट देने पर इसके अन्दर से ना जाने कितने स्वर्ण-अंडे निकलेंगे। और उसने पेड़ को पूरा हासिल करने के इरादे से उसका गला काट दिया। पेड़ की मौत हो गई। पूरे गांव में दहशत फैल गई। और अपनी इस गलती पर पछताने के बजाए बस्ती गांव से भाग खड़ी हुई।

जानवरों और पंछीयों ने कोशिश तो बहुत की, कि जाएं और रोक लें बस्ती को, पकड़ लें उसको, पूछें उससे। क्यों किया ऐसा? क्यों काटा पेड़ को? क्यों फैला दी दहशत? क्यों शाद समा को गमगीन किया? क्यों? लेकिन कर ना पाए। जो भी बस्ती के पास जाता वह उसे अपने द्वारा बनाए हथियारों से मार गिराती। बस्ती धोखेबाज़ और लालची तो थी ही, अब निर्दयी भी हो गई थी। जो सबा उस तक गई उसे भी सियाह और प्रदूषित कर के वापस भेजा।

दूसरी ओर पेड़ की मौत से नदिया सदमे में आ गई। उसे दुख था इस बात का कि पेड़ नहीं रहा लेकिन इस बात का दुख ज़्यादा था कि जिस बस्ती पर उसने भरोसा किया, जिसपर एतमाद, एतबार किया उसी ने उसके विश्वास की धज्जियां उड़ा दी। नदिया ने खाना-पीना छोड़ दिया। उसका शरीर ज़र्द पड़ने लगा और ज़ईफ़ होते-होते एक दिन नदिया सूखकर हमेशा के लिए सो गई। नदिया से महरूम रहकर चंद रोज़ में जानवर और पंछी भी फ़ौत हो गए, सब्ज़ा ज़र्द पड़ गई और फूल सूख गए। हवा चलती रही, लेकिन अपने प्रदूषित और सियाह रूप में। बची तो केवल बस्ती। लालची, ला-परवाह और निर्दयी बस्ती, जो आजकल एक नाले के किनारे अपनी ज़िन्दगी बसर कर रही है।

Keep Visiting!

No comments:

Post a Comment

पूरे चाँद की Admirer || हिन्दी कहानी।

हम दोनों पहली बार मिल रहे थे। इससे पहले तक व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर बातचीत होती रही थी। हमारे बीच हुआ हर ऑनलाइन संवाद किसी न किसी मक़सद स...