Friday, 29 June 2018

हिरानी के संजू।



दुनियाभर के प्रसिद्ध और जाने-माने लेखकों में ओ हैनरी महान कहानीकार हुए हैं। उनकी लघु-कथाओं पर कई
फिल्में रची जा चुकी हैं और रची जानी हैं। हालिया फिल्म भावेश जोशी सुपरस्टार के निर्देशक विक्रम आदित्य मोटवानी ने सोनाक्षी सिन्हा और रणवीर सींह को लेकर फिल्म लुटेरा की रचना की थी जो ओ हेनरी की ही एक लघु कथा "दी लास्ट लीफ" पर आधारित थी। ओ हेनरी की ही एक और लघु कथा "दी गिफ्ट्स ऑफ़ मैगी" विश्व प्रसिद्ध कहानियों में से एक है। इस कहानी का एक जुमला कुछ यूँ है कि "लाइफ इस फुल ऑफ़ सॉब्सस्माइल्स एंड स्निफल्सविथ स्निफल्स प्रिडॉमिनेटिंगहाल ही में सिनेमाई परदे पर आई फिल्म "संजू" इस जुमले को सार्थक सिद्ध करती है।

भारतीय फिल्म जगत में संजू बाबा के नाम से मशहूर अदाकार संजय दत्त के जीवन पर आधारित यह फिल्म आपको हंसाती हैरुलाती हैसोचने पर मजबूर भी करती है और बे-फ़िक्र रहने की सलाह भी देती है। फिल्म मिशन कश्मीर की एडिटिंग से इंडस्ट्री में दस्तक देने वाले मशहूर निर्देशक राजकुमार हिरानी के निर्देशन में बनी यह फिल्म दर्शकों के बीच खासी पसन्द की जा रही है। हिरानी पिछले कई सालों से इस फिल्म को तैयार करने में जुटे हुए थे और उनकी मेहनत रंग लाती नज़र आती है। संजय दत्त भारतीय सिनेमा जगत के उन कलाकरों में से हैं जिनका जीवन काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है और शायद इसलिए ही निर्देशक को उनकी कहानी में कुछ कहने जैसे नज़र आया होगा। संभवतः हिरानी को यह फिल्म बनाने का ख्याल फिल्म मुन्ना भाई एम् बी बी एस और लगे रहो मुन्ना भाई को रचते हुए आया होगा। एक निजी इंटरव्यू में हिरानी ने माना था की इस फिल्म को रचने का एकमात्र कारण संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त हैं जिन्होंने एक दफा यूँही संजू से जुड़े कुछ किस्से उन्हें सुनाए थे।

फिल्म की शुरुआत एक बेहद मज़ेदार बातचीत से होती है जिसमे एक उपन्यासकार संजय दत्त पर किताब लिखकर उनके पास लाया है। लेखक उपन्स्यास में संजू की तुलना महात्मा गाँधी से कर बैठता है जो उन्हें बिलकुल ना-गवारा गुज़रती है। वह लेखक को लात मारकर घर से बाहर निकाल देते है। लेखक का किरदार पियूष मिश्रा साहब ने निभाया है और फिल्म को एक जोर दार शुरुआत दिलवाई है।

कई परतों से सजी यह फिल्म ऊपरी तौर पर तीन हिस्सों में तकसीम हुई है। पहला हिस्सा संजू के ड्रग एडिक्शन और ज़ुबिन मिस्त्री(जिम सरभ) नामक ड्रग डीलर से मुलाक़ात को लेकर है। दूसरा हिस्सा उनकी पहली फिल्म रॉकी की रिलीज़, माँ नर्गिस(मनीषा कोइराला) की म्रत्यु और अमेरिका में अपने जिगरी दोस्त कमलेश(विकी कौशल) से मुलाक़ात को लेकर है। इस ही हिस्से में उनका ड्रग्स के चंगुल से आज़ाद होना भी दिखाया गया है। आखिरी हिस्सा आर्म्स एक्ट के तहत जेल जाने से लाकर सुनील दत्त(परेश रावल) की मृत्यु तक की कहानी बताई गई है।

संजय दत्त की भूमिका में रणबीर कपूर कमाल लगे हैं उनके लुक्स से लेकर उनकी चाल-ढाल सबकुछ स्क्रीन पर एकदम हकीक़त मालूम होती है। उन्होंने अपनी बेजोड़ अभिनय क्षमता को एक बार फिर साबित किया गया है। कई सालों बाद इंडस्ट्री में वापसी करने वाली मनीषा कोइराला ने नर्गिस दत्त के किरदार में जादू सा कर दिया है। परेश रावल यानी सुनील दत्त साहब भी सभी की उम्मीदों पर खरे उतरे हैं। विकी कौशल "मसान" और "राज़ी" जैसी काबिल-ए-तारीफ फिल्मों के बाद यहाँ भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हुए। "नीरजा" और "पद्मावत" में दिल-सोज़ अभिनय करने वाले जिम सरभ यहाँ भी खासे सराहे गए हैं। बमन इरानी, तबू, करिश्मा तन्ना आदि भी कुछ ही पल में अपना स्थान बना पाने में कामयाब हुए हैं।

राजकुमार हिरानी और उनके सदाबहार साथी लेखक अभिजात जोशी की स्क्रिप्टिंग एक बार फिर बेहतरीन साबित हुई है। भारतीय दर्शकों की नब्ज़ पकड़ चुके हिरानी फिल्म माध्यम की पूरी समझ रखते हैं और अपनी  रचनाओं में कला के साथ-साथ मनोरंजन को भी बराबर जगह देते हैं। सबब है की उनकी हर फिल्म समीक्षकों के साथ-साथ आम दर्शकों को भी मुतासिर करती हैं। 

गौरतलब है की हिरानी की कहानियों में भी हँसी-मज़ाक के साथ-साथ एक सामाजिक चिंता भी नज़र आती है जो की ऋषिकेश मुख़र्जी की फिल्मों में भी देखने को मिलती थी। कोई हैरानी नहीं की हिरानी ऋषि दा की फिल्म कला से बहुत अधिक प्रभावित हैं। इतने की फिल्म "मुन्ना भाई" में उन्होंने एक किरदार का नाम ऋषि दा की एक फिल्म के नाम "आनंद" पर रखा था। काबिल-ए-गौर बात है की ऋषि दादा भी राजकुमार हिरानी की ही तरह निर्देशक होने से पहले एक फिल्म एडिटर थे। फिल्म में ना चाहते हुए भी संजय दत्त की एक सार्थक छवि पेश की गई है जो की भारतीय बयोपिक्स का एक अभिन्न अंग है। हालांकि हर बायोपिक में बचपन दिखाने की भारतीय निर्देशकों से मेरी शिकायत को हिरानी ने करारा जवाब दिया है।

फिल्म ने संजय दत्त पर लगे सारे आरोपों की पीछे की कहानियों को दर्शाते हुए भारतीय मीडिया पर करारा वार किया है। हिरानी ने दिखाया है की किस तरह मीडिया बिना किस रिसर्च के बस मसाला परोसती है और इस चक्कर में कई बे-गुनाहों को गुनहगार घोषित कर देती है। फिल्म का संवाद है की "अदालत केस समझने में कई साल लेती है लेकिन मीडिया तुरंत फैसला सुनाती है" मोदिमंडन कर रहे कुछ निजी चैनल्स को यह फिल्म उनके न्यूज़ रूम में दिखाई जानी चाहिए। फिल्म पिता-पुत्र और दोस्त-दोस्त के आपसी संबंधों को भी परदे पर बखूबी उजागर करती है। 

ऐ आर रहमान और रोहन-रोहन का संगीत सुकूनदायक है और इरशाद कामिल के साथ अन्य गीतकारों के गीत काफ़ी वक़्त तक लोगों के ज़हन में रहेंगे। फिल्म में तीन बड़े गीतकारों को तीन उस्तादों के रूप में दर्शाया गया है जिनके लिखे गीत संजय दत्त को जीवन जीने की राह बताते हैं। इन उस्तादों के नाम आप स्वयं खोज सकते हैं। फिल्म की पृष्ठभूमि इस तरह रची गई है कि लेखिका विनी डिऐज़ (अनुष्का शर्मा) इसकी रूह बन गई हैं। संजय दत्त की पत्नी मान्यता विनी से आग्रह करती हैं कि वे उनके पति पर एक किताब लिख कर जनता के सामने वह सब लाएं जो मीडिया नहीं लाया। इस प्रक्रिया में विनी संजय से जुड़े लोगों से मिलती है और एक किताब तख्लीक करती है। और विनी के ज़रिये निर्देशक संजू से हमारा तआरुफ़ करवाता है।

अंतिम दृश्य में संजू की जीवन-गाथा पर लिखी बात हिरानी का समाज को संदेश है। यह बात असल में राजेश खन्ना अभिनित फिल्म "अमर प्रेम" का एक गीत है जिसे मक़बूल गीतकार आंनद बक्शी ने लिखा है। बक्शी साहब ने लिखा था "कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना"।

निर्देशक के तौर पर अपनी पहली फिल्म में हिरानी ने सर्किट(अरशद वारसी) का किरदार रचा था जो बात-बात पर मुन्ना भाई(संजय दत्त) से कहता था "भाई तू टेंशन नहीं लेने का हाँ! अपुन है, अपुन करेगा सब"। "संजू" को रचते हुए हिरानी संजय दत्त के रियल लाइफ सर्किट साबित हुए हैं।

मैंने यह फ़िल्म 320 रूपए में देखि है। इस ही से आप इसके स्तर का अंदाजा लगा सकते हैं। यह फिल्म एक सम्पूर्ण सिनेमाई रचना है जिसका देखा जाना काफ़ी हद तक ज़रूरी है।


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