Friday, 22 June 2018

शायरी का कद इतना क्यूँ गिराया जाए | तौसीफ़ अहमद।


पुनीत भैया के बाद अब दिल्ली के इन जनाब से आपका तारुफ़ कराय देता हूँ। ये हैं दिल्ली शहर के जाने-माने और बेहद दानिश-वर शायर तौसीफ अहमद। तौसीफ भैया से मेरी मुलाक़ात वहीँ हुई जहाँ पुनीत भैया से हुई थी, मोजज़ा ए जीस्त नामक एक मुशायरे में। भैया की ग़ज़लों में उनका इल्म और बेबाकी झलकती है। गुलज़ार साहब का एक जुमला है की एक नज़्म लिखने के लिए आपको डेढ़ सौ नज़्मों से होकर गुज़रना पड़ता है। मेरी नज़र में तौसीफ भैया इस जुमले की एक ज़ाहिर अलामत हैं। आज उनकी एक ग़ज़ल जिसका चौथा मेरे बेहद पसंदीदा अशआरों में से एक है आपके लिए उनकी जानिब से एक नज़राने के तौर पर यहाँ पेश है। 


कैसे मजनूं को इस हिज्र में नचाया जाए।

कल ही वस्ल की शब् है उसे बताया जाए।।
खाई तो नहीं ठोकर बहुत दिनों से हमने।
यूँ करें किसी पत्थर को फिर सताया जाए।।
जागने की कोई भी तमन्ना हमको ना हो।
ख़्वाब कोई ऐसा ही हसीं दिखाया जाए।।
ऐरे-ग़ैरे सबके ही ज़बा की ज़ीनत बन जाए।
शाइरी का क़द इतना क्यों गिराया जाए।।
मेरी ही तमन्ना ले के आयी है वो महफ़िल में।
मेरे पास इज़्ज़त से उसे बिठाया जाए।।
अपनी बेवफाई से सताया उसने सब को।
ऐसे ही कभी हमको भी आज़माया जाए।।
कैसे पा लिया आसानी से ख़ुदा को उसने।
जादू ये हमें भी तो कभी सिखाया जाए।।

Keep Visiting!

No comments:

Post a Comment

For Peace to Prevail, The Terror Must Die || American Manhunt: Osama Bin Laden

Freedom itself was attacked this morning by a faceless coward, and freedom will be defended. -George W. Bush Gulzar Sahab, in one of his int...