Saturday 10 October 2020

अ से अश'आर।




एक

कई तो ख्यालों में पालते हैं हमें।

कुछ लोग नज़्मों में ढ़ालते हैं हमें।।



ये दो मिसरे क्या हैं, मतले में पता?

दोनों के दोनों मुगालते हैं हमें।।



वो लोग जिनसे इश्क़ है, एक जैसे हैं।

सब के सब कमबख्त हैं, टालते हैं हमें।।



तोड़ो कभी ना ख़्वाबों से निस्बत।

हक़ीक़तन ये ही संभालते हैं हमें।।



ये लोग जो ज़मीं पर ले आए हमें।

वो लोग हैं जो अक्सर उछालते हैं हमें।।


दो

अपनी ख़ुशियाँ खो देते हैं रोने वाले लोग।

बैठे-बैठे रो देते हैं रोने वाले लोग।।


उनकी आँखों का तारा होती है मायूसी,

ग़म से आँखें धो देते हैं रोने वाले लोग।।


रोने वाले क्या देते हैं दुनिया वालों को?

जो पाते हैं वो देते हैं रोने वाले लोग।।


दुःख से कैसे ख़ूबसूरत नज़्में होती हैं?

ख़ुद को दुःख में बो देते हैं रोने वाले लोग।।


जितने दर्द सितमगर कोई तुम को देता है।

उतने तो ख़ुद को देते हैं रोने वाले लोग।।


हँसते हैं तो हँसते-हँसते बे-हद हँसते हैं।

फ़िर हँसते-हँसते रो देते हैं रोने वाले लोग।।

तीन

सब सँवारे जा रहे हैं।
हम नकारे जा रहे हैं।।

जीतना चाहते हैं तुम को,
और हारे जा रहे हैं।।

तुम नज़र से क्या गई हो,
सब नज़ारे जा रहे हैं।।

तुम सुनो या ना सुनो जाँ,
हम पुकारे जा रहे हैं।।

चाँदनी उस सू है कम कुछ,
सो सितारे जा रहे हैं।।

आपका हर हुक्म है कूड़ा,
हम बुहारे जा रहे हैं।।

हुक्मरां के सब मुख़ौटे,
अब उतारे जा रहे हैं।।

चाँद हो तुम, सूर्य जिस तक
काफ़ी सारे जा रहे हैं।।

प्यार लेकर इस जहाँ का,
लोग प्यारे जा रहे हैं।।

कोई तो चारा करो ना,
वो बेचारे जा रहे हैं।।

देखना उड़ जाएँगे हम,
पँख निखारे जा रहे हैं।।

प्रद्युम्न अब क्या देखना है -
ख़ाब मारे जा रहे हैं।।

चार

यार शायर डर गया।

आंखों से उतर गया।।


ख़ौफ़ में सब लफ्ज़ थे,

कैसे जीता? मर गया।।


सबसे पहले तुम गए,

फिर तुम्हारा असर गया।।


क्यों नहीं उड़ते हो तुम?

कौन पर कतर गया?


सहमे-सहमे बैठे हो।

हौसला किधर गया?


ज़र ही था नीवे-मकां।

ज़र गया तो घर गया।।


शेर सब पायाब थे?

क्या कोई अंदर गया?


सरपरस्त तो आप थे।

आपका भी सर गया?


और सुबू ना भरो,

दिल हमारा भर गया।।


पांच

हम सितम की हदों से गुज़र जाएंगे।

देख कर ये सितमगर सिहर जाएंगे।।


काश! धोखे में रहते, भरम में सदा।

काश! पता ना होता कि मर जाएंगे।।


आप जानेंगे कितने सियाह हैं ये दिल।

ख़ुद पे गौर करेंगे तो डर जाएंगे।।


जिनको घेरे खड़ा है अंधेरा वो लोग -

शोर जिस ओर होगा उधर जाएंगे।।


आप मंचों से चिल्लाएंगे झूठ हम,

सच के बन हमसफ़र दर-ब-दर जाएंगे।।


होगा मुश्क़िल बहुत आसमाँ का सफ़र

तूफाँ डर'आएंगे, काटे पर जाएंगे।।


जन्नत या जहन्नुम? सवाल है यह -

कोख में मरने वाले किधर जाएंगे?


हर जगह से निकाला गया गर हमें,

रोएंगे बाद में पहले घर जाएंगे।।

छह

बात हमारी चल रही है,

दुनिया यूँ बदल रही है।।


शम्स देखा भी नहीं है,

और हथेली जल रही है?


रात भी चाहती है सुबह,

"रात" उसको खल रही है।।


बोई थी नफ़रत कभी जो,

आज देखो फल रही है।।


उठ खड़ी होगी हक़ीक़त,

अभी आँखें मल रही है।।


रात में कुछ तो हुआ है

सो सहर मचल रही है।।


क्या सबब है ग़ज़ल-गो को,

ग़ज़ल-कारी खल रही है।।


बाढ़ आना तय है लोगों,

बर्फ़ जो पिघल रही है।।

सात

मेरे शेरों को हाथों में संभाला करेंगे।

ये जो कहते हैं मुँह मेरा काला करेंगे।।


मुझसे जलने वाले भी कमज़ोर नहीं हैं।

ये चराग़ बन जाएँ तो उजाला करेंगे।।


जिन सफ़र पर फूल की आस है तुमको,

वो सफ़र ही पांव में छाला करेंगे।।

 

"है हमसे किसी को मुहब्बत जहाँ में।"

भरम हम ये ता-उम्र पाला करेंगे।।

 

क़सम है नज़्म की के हर अंजुमन में,

हम तेरे नाम अश’आर उछाला करेंगे।।


कफ़स है एक पास उनके, आब-ओ-दाना है

देखना अब वो आवाज़ें पाला करेंगे।।

 

वो कब तक सदाकत छिपाएंगे "प्रद्युम्न"?

वो किस-किस के मुँह पर ताला करेंगे?

आठ

हमें ना जीत की चाहत, हमें ना हार का डर है,

हमारे पास एक घर था, हमारे पास एक घर है


यही मासूम रुख़ देखो, यही इबलीस, दरिंदा है।

कभी बाहर नहीं आता, पसे चहरा है, भीतर है।


सफ़ीने और परिंदे हैं, किनारे लोग हैं बैठे।

मगर जो मैं अकेला हूँ, अकेला तो ये समंदर है।।


किसी की आरज़ू है फूल बस एक बू के अब ऊगें।

बड़ी ग़मगीन ख़्वाइश है, बड़ा बे-कार चक्कर है।।


यहां जो जैसे होगा सब ख़ुदा के हाथ है मतलब,

हमारे हाथ में केवल महीनों का कलेंडर है।


उसे मालूम है उस की हक़ीक़त कुछ नहीं है वो।

मगर माशूक उस के कह रहे हैं वो ही कलंदर है।।


सुना कई बार था पहले, मगर एतबार आया अब।

कि जब एक आँकड़ा हो आदमी, तब मौत बदतर है।


किसे मकतूल माने हम, किसे कातिल कहें बोलो,

दोनों का सीना छलनी है, दोनों के हाथ खंजर है।।

Keep Visiting!

2 comments:

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