कूद आई धुप और,
दरीचे पर बैठ गई...
फिर आई बाद-ए-सबा,
सब गेसू मेरे बिखरा गई....
नज़र गढ़ा कर,
बहुत देर तक,
धूप मुझे तकती रही..
साथ उसके,
बहुत देर तक,
बाद-ए-सबा बहती रही....
दो कदम आगे सरक कर,
धूप सो गई किताब पर...
जिसपर लिखा था,
"मंटो की चुनिंदा कहानियां"
कुछ सफ़हे पलटे सबा ने तो,
धूप ने इक आह भरी....
एक इंद्रधनुष तख़लीक़ हुआ,
"मंटो" की किताब पर....
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