I may have stopped loving you, friends but I will never stop loving the days I loved you
-Ruskin Bond
(Delhi is not far)
The following Poem is based on "Ruskin Bonds" Novel "Delhi is Not Far"
Delhi is not far by Ruskin Bond |
Note - Reading the following Poem will not be fruitful until and unless you have read The original novel.
A Tribute to Him.... |
आओ कभी वक़्त निकालें, "पीपलनगर" चलें..
खड़े रहकर छोर पर तंग गलियां झाँके,
और बाज़ार घूमे सारे, "पीताम्बर" के रिक्शा में...
बैठ शहर के नुक्कड़ पर,
एक चाय मंगाएं "गूंगा" से....
कहाँ रहते हैं "अरुण-सूरज?", पता पूछें...
आओ चलें हजामत करवाएं, दीपचंद हज्जाम से,
और बेच दें सारा कबाड़ अपना,
"अज़ीज़" मियां को....
कुछ वक़्त खरीदें, "गणपत" भिखारी से,
कोई अफ़साना सुनें...
जानें के कैसे आई वो कूबड़ उसकी,
और मिल आएं बिपिन भूत से,
पुराने पीपल पर जाकर...
चलें सेठ "गोविन्द राम" के यहाँ, आवाज़ लगाएं
हाल जाने कमला का और,
कहाँ रहते हैं "अरुण-सूरज?", पता पूछें...
आओ के मुलाकात करें,
सचेत "चौकीदार" से,
और चलें उसके साथ, बीच मैदान में....
जगाएं, बैंच पर बेसुध पड़े, "सूरज" को,
और चल पड़ें साथ उसके,
अरुण कि जानिब....
बैठकर तार वाले पलंग पर,
कलाम सुनें अरुण का, दाद दें उसे,
और दरीचों से देखें, वो सब बवाल शहर के...
कुछ रोज़ गुज़ारें वहीँ उस कमरे में,
चूहों-छिपकलियों के संग और,
मज़े करें बारिश में, शहर से बाहर जाकर...
आओ के हो आएं, नंदा-देवी, जो अरुण कहे,
घूमें कोहसारों के बीच और,
ज़हन में दश्त उतारें...
ताकें चीड़, ताड़, देवदार और बलूत को,
खेलें शजर के फूलों से..
और बैठे रहे घंटों, खुबानी के तले..
सूंघें सब खुशबू, आफ़ताब की,
और सुनें फिज़ाओं की सरगोशियाँ,
आओ के लूट लें, ये सब्ज़ लम्हे सारे...
आकर वापस "पीपलनगर", दीपचंद-पीताम्बर के पास...
बधाई दें. "सूरज" को पास होने पर,
और फिर रवाना करें,"अरुण" को दिल्ली के लिए...
करके रवाना "अरुण" को, लौट आएँगे घर अपने,
और इंतज़ार करेंगे "अरुण" का,
"कमला" और बाकियों की तरह.....
आओ ना कभी वक़्त निकालें,
"पीपलनगर" चलें.."भारत" देखें, "रस्टी" की नज़र से.....
"An Old Man who still writes Young Stories"
That's Ruskin Bond For Me!
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