प्रस्तुत लेख किसी भी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर नहीं लिखा गया है। इस लेख के माध्यम से मैंने समाज में मौजूद खोखले संस्कारों एवं विचारधाराओं पर अपने निजि मत साझा किये हैं। अगर मेरे किसी भी कथन से किसी की भावनाओं को ठेंस पहुँचती है तो में क्षमाप्रार्थी हूँ। मगर स्मरण रहे सत्य यही है जिसे ना आप परिवर्तित कर सकते हैं और ना ही मैं।
इस समाज द्वारा सिखाए गए सभी नियम, माफ़ कीजियेगा संस्कारों में से सबसे भयानक संस्कार हैं मेहमानों के सामने दिखाए जाने वाले संस्कार। घर में आते ही मेहमान के पैर छुएं और नमस्कार कहें इसके पश्चात् यदि आप सीधे अन्दर के कमरे में चले जाते हैं तो आप असंस्कारी हैं क्योंकि घर आए मेहमान से बातचीत किये बिना आप भीतर कैसे जा सकते हैं और यदि आप वहीँ मेहमानों के साथ बैठ गए तो आपको एक बार फिर असंकारी घोषित करते हुए नसीहत दी जाएगी के इस तरह बड़ों के बीच नहीं बैठा करते। लेकिन यदि आप पैर छूना ही भूल गए तो आप अव्वल दर्जे के असंस्कारी कहलाएंगे।
मैं कई दफा घर आए मेहमानों के पैर छूना भूल जाता हूँ, और विभिन्न प्रकार के ताने सुनता हूँ। अक्सर ये मेहमानों से जाने के बाद सुनाए जाते हैं मगर कभी-कभी तो स्वयं मेहमान कटाक्ष करने से नहीं चूकता। अपने से बड़ों के चरण स्पर्श करना बेशक एक अच्छी आदत है और ऐसा करने से व्यक्ति के संस्कार झलकते हैं मगर यदि कोई व्यक्ति भूलवश किसी के पैर छूना भूल जाए तो इसका अर्थ कतई यह नहीं के वह असंस्कारी है एवं अपने से बड़ों का सम्मान करना नहीं जानता। मेहमानों के चले जाने के बाद घर में उनके मुतालिक मुख्तलिफ तरह की बातचीत होती हैं जिनमे मैं कभी शामिल नहीं होता क्योंकि यह मेरे अपने संस्कार हैं।
संस्कारी बनने का अगला नियम कहता है कि व्यक्ति को व्यवहारिक होना चाहिए। हिंदी के किसी भी साधारण शब्दकोष के अनुसार व्यवहार का अर्थ होता है किसी से वार्तालाप करने एवं मिलने का तरीका या पद्धति मगर समाज के संस्कारों के अनुसार किसी के घर जाकर उसके यहाँ रहना, खाना, पीना आदि करना और फिर लौटते वक्त घर के बच्चों एवं बहुओं को कुछ पैसे या उपहार देना व्यवहार कहलाता है। मुझे अपने किसी भी रिश्तेदार के यहाँ ज्यादा दिनों तक रहना पसंद नहीं, क्यों? एक सवाल है, उत्तर स्वयं मेरे पास नहीं है। और उत्तर सुनना किसे है? किसी को नहीं उन्हें तो केवल घोषणा करनी है मेरे असंस्कारी, घमंडी एवं स्वार्थी होने की। बिगुल बजाना है मेरी खामियों का. खामियां?, इन्हें तो सुधारा जाना चाहिए, इनसे निजात पानी चाहिए। मगर मैं यह नहीं कर सकता। नहीं कर सकता क्योंकि मैं इन्हें खामियां नहीं मानता। मेरी अपनी कुछ आदतें हैं, सभी की होती हैं और यदि इन्ही की वजह से समाज मुझे असंस्कारी घोषित करता है तो संस्कारी बन पाना मुश्किल है या शायद नामुमकिन। समाज को, वाइजों को, उपदेश देने वालों को समझना होगा कि किसी के पैर ना छूने से कोई असंस्कारी नहीं होता वरन किसी बुज़ुर्ग पैरों को खड़ा देख खुद आराम से बैठे रहने से व्यक्ति असंस्कारी मालूम पड़ता है. किसी को तोहफा दे देने से नहीं अपितु प्यार एवं सम्मान देकर अपने संस्कारों को दिखाया जाता है। क्या कहा? दिखाया जाता है। माफ़ कीजिएगा लेकिन संस्कार कभी दिखाए नहीं जाते वे तो झलक उठते से आपकी सरलता में, आपकी सच्चाई में, आपकी नैतिकता में और निःसंदेह आपके विचारों में।
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